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________________ ( 47 ) . की हैं उन्हें तो. खरतरों ने मिट्टी में ही मिला दिया / यदि ऐसे अधर्म और अन्याय करने में भी खरतरों ने गच्छ का अभ्युदय समझा हो तो इससे अधिक दुःख की बात ही क्या हो सकती है। खरतरों ने चोरड़िया, बाफना, संचेती और राकों को स्वतंत्र गोत्र लिख कर उनको खरतराचार्य प्रतिबोधित होना ठहराने में कई कल्पित ख्यातें रच डाली हैं। पर उनको इतना ही ज्ञान नहीं था कि चोरड़िया आदि मलगोत्र हैं या किसी प्राचीन गोत्र की शाखाएँ हैं ? इसके निर्णय के लिए हम ऊपर प्रमाण लिख आये हैं / उनकी प्रमाणिकता के लिये यहाँ कुछ सर्वमान्य शिलालेख उद्धत कर दिये जाते हैं। -- १-चोरड़िया जाति किस मूल गोत्र की शाखा है ? जिसके लिये शिलालेखों में इस प्रकार उल्लेख मिलते हैं:__ "सं 1524 वर्षे मार्गशीर्ष सुद 10 शुक्र उपकेश ज्ञातो आदित्यना गगोत्र स० गुणधर पुत्र० स० डालण भ० कपूरी पुत्र स० क्षेमपाल भ० जिणदेवा इ पु० स० सोहिलेन भातृ पासदत्त देवदत्त भार्या नानूयुतेन पित्री पुण्याथ श्री चन्द्रप्रभ चतुर्विशति पटुकारितः प्रतिष्ठित श्री उपकेश गच्छे ककुदा चार्य संताने श्री ककसूरिभिः श्री भट्टनगरे। .. बाबू पूर्ण० सं. शि. प्र० पृष्ट 13 लेखांक 50 "सं 1562 व० वै० स०१० रवौ उकेशाज्ञातौ श्री आदित्यनाग गोत्र चोरवेडिया शाखायाँ व०
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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