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________________ (20) / (18) मल गोत्र लघुश्रेष्ठि–(उ० वी० 70 वर्षे) लघुश्रेष्ठी / बोहरा | खजांची | कुबड़िया वर्धमाना पटवा / पुनोत . लुणा भोभलीया | सिंघी गोधरा नालेरिया लुणेचा | चित्तोड़ा / हाड़ा. / गोरेचा ____आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने अपने जीवन में उपकेशपुर के बाद १४वर्ष तक मरुधरमें घूमकर लाखों अजैनों को जैन बनाये, उनके क्या गोत्र हुए ? उनके लिए तो हम अज्ञात ही हैं। सिर्फ चार गोत्र और उनकी थोड़ी सी शाखाओं का पता मिला है वह यहां दर्ज कर दिया जाता है जो निम्न लिखित है: (1) मूल गोत्र चरड़ चरड़ | कांकरीया | सानी किस्तूरीया ... बोहरा पारणिया | संघवी वरसांणि अछुपत्ता (2) मूल गोत्र सुघड़:सुघड़ / संडासिया | तुला .. | मोशालिया दुघड़ / करणा / लेरखा ये 7 शाखाएं हैं (3) मूल गोत्र लुगलुंग | चंडालिया | भाखरिया | बोहरा आदि (४)मूल गोत्र गटियागटिया | टींबाणी | काजलीया | रांणोत आदि
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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