________________ ( 11 ) ककुदाचार्य, ककसूरि, देवगुप्तसूरि, सिद्धसूरि / द्विवन्दनीक शाखा के-कक्कसूरि, देवगुप्त सूरि, सिद्धसूरि / खजवानी शाखा केकक्कसूरि, देवगुप्रसूरि, और सिद्धसूरि / इनके अलावा, जम्बुनाग गुरु, कृष्णार्षि, पद्मप्रभवाचक वगैरह महान प्रभाविक आचार्य हुए हैं और इन गच्छ परम्परा से इन्होंने शुद्धि संगठन का ठास कार्य कर जैनशासन की कीमती सेवा बजाई है / जैन समाज भले ही अपने प्रमाद, अज्ञान और वृतघ्नी पने से उसको भूल जायँ; पर जैन साहित्य इस बात को डंके की चोट बतला रहा है कि आज जो जैन धर्म जगत् में गर्जना कर रहा है, वह उन्हीं महात्माओं की शुभ दृष्टि और महती कृपा का फल है कि जिन्होंने महाजन वंश की स्थापना कर जैन शासन का बहुत भारी उपकार किया था। ऊपर बतलाए हुए बृहद् शान्ति स्नात्र पूजा में स्नात्रियों के अट्ठारह गोत्रों के नाम इस प्रकार बतलाए हैं : "तमभटो बप्पनाग, स्ततः कर्णाट गोत्रजः // तुर्यो बलाभ्यो नामाऽपि,श्रीश्रीमालः पञ्चमस्तथा 166 कुलभद्रो मोरिषश्च, विरिहिंद्यह्रयोऽष्टमः // श्रेष्ठि गोत्राण्यमून्यासन पक्षे दक्षिण संज्ञके // 170 // सुचिन्तताऽऽदित्यनागौ, भूरि भोऽथ चिंचटिः //