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श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो.
पुत्र पास ए। परिव्राजक सहसस्युं शुचि, संयम लीए उल्हास ए ॥ ॥ चौद पूरव सुचि मुनि लणे, सहस्र शिष्यनो परिवारोरे; थावच्चापुत्र पण सहसस्युं, सेठेजे चम्या अणगारो रेः-अणगार चमीया, कर्म जमीया, पामि केवल सिद्धि गया । सुचि पासे सेलग पंच सयास्यु, अन्यदा संयत थया ॥ सेलग पण अग्यार अंगी, पंच सय मुनिनो धणी । सेज सुचि पण सहस साथे, सिधि पहुता महामुणी ॥ ॥ सेलग राज झषि विहरता, अरस विरस रस आहारो रे; सरीरे दाघ ज्वर उपनो, न चाले कांश उपचारो रेःउपचार कां जब न चाले, सेलगपुरे मुनि श्राविया। मृक कुंअर वांदि पूढे, नगवन् कांश पूर्बल थया॥ तव कह्यो कारण दाघ ज्वरनो, वैद ततक्षिण पूर्वीया। पामीयु औषध थया सुखोया सेलग कृषि तिहां मूीया ॥ १० ॥ तव पांचसे शिष्य विहरीया, पंथग मूक्युं ले पासेरे; आहार करी गुरु पोढीया, सांके काती चोमासेरेः-चोमासे गुरु पाय खामे, पंथग कृषि