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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. तिण कारण नवियण सुणो । पाप प्रमाद सवि टा. लो रे ॥ ब्रह्म कहे जिन आणसुं । चारित्र मारग पालो रे ॥ विषम ॥७॥ ॥ इति कर्म प्रकृति सज्झायम् ॥ ३३॥ श्रीलेश्याध्ययन सज्माय ३४. (जीवडा अवगुण विष दूषण टालि-ए देशीमां) लेश्या बह जिणवर कहे रे । जीव तणो परिणाम ॥ कृष्ण नील कापातए रे, तेज पदम शुक्ल नाम ॥१॥ जगत गुरु लेश्या कहे विचार । अप्रशस्त सवि परिहरी रे॥धरो प्रशस्त प्रकार (आंकणी) कृष्ण लेश काजल समी रे । चास पंखि सम नील ॥ अलसि कुसुम कापोत डे रे । ए त्रण विरुक्ष लील ॥जगतः ॥॥ तेज लेश जिम करमजी रे । पदम जिसी हरियाल ॥ सुकिल संख जिम उजली रे । एह प्रशस्त संजाल ॥ जगत ॥३॥ कयरसे पहिली कही रे । बीजी तीखी हो ॥त्रीजी तुरी जाणवी रे चोथी खाटी जो ॥ जगतम् ॥४॥ आसव रस पंचम
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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