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________________ श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. नित । चरण नमुं मन रंग ॥ संजल ॥१२॥ इति प्रमाद स्थान सज्झायम् ।। ३२ ॥ आठ कर्मनी सन्काय ३३ आठ करम जिणवर कह्या । ज्ञानावरण विचारो रे ॥ दर्शनावरण वली मोहनी । वेदनी आयु संजारो रे ॥१॥ विषम करम गति जाणजो, धर्म करो मन जाव रे; ए नव समुह तरण जिसें, पामिय प्रवचन नाव रे ॥ विषम ॥२॥ नामने गोत्र अंतराय ए, आठ करम तणा नामो रे; एहतणी प्रकृति सह, एकसो अगवन्न ठामो रे ॥ विषम ॥३॥ मोह थिति सागर जाणवी । सित्तर कोमा कोमी रे॥ सागर तेत्रीस आयुनी । त्रीसावरण दोय जोमी रे ॥ विषम ॥४॥ वेदनी करम अंतरायनी । त्रीस कोमा कोमी जाणो रे ॥ अंतरमुहर्त सवितणो। आयु जघन्य मन आणो रे ॥ विषम ॥५॥ वीस कोमाकोमी सागरे । नाम ने गोत्र संनारो रे ॥ आठ मुहर्त जधन्य ए । जाणीय बंध निवारो रे ॥ विषम ॥ ६॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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