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श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. । हिव दरिसण जोग ॥ सहज धर्म एक नर लहे । जाती समरण जोग ॥ मोदण् ५॥ बीजी रुचि उपदेशनी । त्रीजी सुगुरु प्रतीत ॥ चोथी श्रुत नणतां हुवे । समकितनी रीत ॥ मोद० ६ ॥ थोमाथी पामे घणुं । पंचम रुचि बीज ॥ सूत्र अरथ अवगाहतां । बठी रुचि रीज ॥ मोद० ७॥ऽव्यादिक संघली परें। नय हेतुप्रमाण ॥ जाण लाधा विस्तर रुचें । ते सप्तम जाण ॥ मोक्षण ७ ॥ गुपति समिति चारित्र गुणे । किरिया रुचि आठ॥पर तीरथथी उन्नगो। पण ज्ञानें माठ ॥ मोह ए ॥ वीतराग लगतें करी । नवमी रुचि संखेव ॥ अव्य बहे पर जोवतां । धर्म रुचिनो नेव ॥ मोद॥ १० ॥ इणिपर दरिसण जाणवू । रुचि दशे प्रकार ॥ हिव तसु सदहणा कहु । तेहनी परचार ॥ मोदण् ११॥ जिनमतनो परिचय करे। करे सुगुरुनी सेव ॥ संगति निह्नवनी तजे। पर तीरथ नहु सेव ॥ मोद॥ १५ ॥ निस्संकिय आदिक वली। पाले आठ आचार ॥ चारित्र प्रथम सामायिकें ।