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________________ ५२ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनो सज्झायो. गुणी गुरु मूके ॥ पंखीनी पर पंख लहीने । जमि विनयथी चूके ॥सुगुण ॥ एहवा देखी गरग महा ऋषि। अविनीत चेला बंमे ॥श्रीब्रह्म कहे चमते संवेगे । क्रिया तणी खप मंझे ॥ सुगुण ए॥ - इति खलुकीयं सज्झायम् ॥ २७ ॥ श्रीमोद मार्गीय सज्जाय २७ ( सुहगुरु जोवे वाटडी-ए देशीमां) सोहम गणहर श्म कहे । सुण. जंबू जाण ॥ शिव सुख कारण धर्म डे ॥ उत्तम गुण गण ॥१॥ मोद मारग तुम ओलखो । तेह पहिर्बु ज्ञान ॥ दरसण चारित्र तप सही। विधि चार समान (आंकणी) ते मति श्रुत अवधि करी । चोथु मन परयाय केवल पंचम जाणवू । ए ज्ञान उपाय ॥ मोद० २॥ अव्य गुणे पर्यव करी । जाणे सर्व विचार ॥ धर्म अधर्मनन काल ए । जीव पुद्गल सार॥ मोद०३॥जीव अजीव पुन्य पाप ए । बंध आश्रव जोश। संक्र निर्जर मोक्षसुं । नवतत्त्व ते हो ॥ मोक्ष ४ ॥ ए जाणे ज्ञानें करी
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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