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श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. १५
श्री नमि प्रव्रज्या सज्जाब ए. (सूयडा संदेशो माहरो जादवनें कहे-ए देशीमां)
मिथिला नगरी जाणिये जुगल बाहु नर रायो रे॥ मयणरेहा सुत नमि पुहवीपति । नमिये तेदना पायोरे ॥१॥ सुरपति एक चित जासप्रसंसा कीधीरे । समता नावें उत्तर दे॥ जेणे दीदा सीधीरे (ए
आंकणी)॥नारि कर एक कंकणनीपरे । देखि वैराग संजारीरे ॥ जातीसमरण चारित्र लेवा । पहुता वनद मकारीरे ॥ सुर ॥२॥ ब्राह्मणरुपें इंछ पधार्या । वात विचारीरे ॥ मिथिला नगरी कां कोलाहल । कारण हेते प्रेरीरे ॥ सुरपति ॥३॥ वृद अडे एक फले फलियो । वाय विशेषे मोलेरे ॥ स्वारथहिणा पंखीया सवि । करपर करता बोलेरे ॥ सुरपति ॥४॥ स्वारथियो सहू को अ । पूत्र कलत्र परिवाररे ॥ कर्मवशे सवि एकत्र मिलिया। वीउमतां नही वाररे ॥सुरपति ॥५॥श्म पूर्वतो बहुपरें । वासव मुनि समकायोरे ॥ त्रण प्रदक्षिणा देश वंदे । परमाणंद चित्त