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श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. अहिप तलार चलावियोजी । दीगे दृष्टं राज ॥ सुगुण ॥३॥ पूबी वात लही खरीजी। मांग कहे एम राय ॥ कपिल विचार करंतमांजी। लोन न पूरो थाय ॥ सुगुण ॥४॥ बिहु मासाने कारणेजी। आव्यो मनह विमास ॥ हिव पूरो को नहीजी । जीव पमयो मोह पास ॥ सुगुण ॥५॥ श्म जाणी चारित लियेजी । पाम्यो केवलनाण ॥ नील पांचसे बूजव्याजी। केवल लहे शुलध्यान ॥ सुगुण ॥६॥ ये उपदेश सुहामणोजी । बंमो मोह विकार ॥ जिनआज्ञा पालो खरीजी । जाण। अथिर संसार ॥ सुगुण ॥७॥जीव जतन त्रिविधे करोजी । बंमो संगति नार ॥ ज्योतिष निमित्त न जाषियेजी। जाणी जिनधर्म सार ॥ सुगुण ॥ ॥ दोष बेतालीस टालियेजी । लीजे शुद्ध आहार ॥ समता सहुसुं आणियेजी। जिम लहिये नवपार ॥ सुगुण ॥ ए॥ कपिल कहे धर्म एहवोजी । जे पाले नरनार ॥ करजोमी ब्रह्मो कहेजी। ते न रहे संसार ॥ सुगुण ॥१०॥
इति कपिल सज्झायम् ॥ ८॥