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________________ श्री केशिप्रदेशीप्रबंध-स्वाध्याय. २२३ जोग । जोगवे सुर संबंधि नोग॥ण अवसरे आव्या श्रीवीर । आमलकप्पा पुर गिरिधीर ॥ ६६ ॥ नाणि जाणि बहु उबव करी। आव्यो अधिक जगति चित्त धरी ॥ वंदन प्रमुख वचन नव कह्या । स्वामी निरवद्य बे संग्रह्या ॥६६॥ बिहुँ उपरे बोल्यो विधिवाद। एह विषे एम म करो प्रमाद ॥ ए पुराण कर्तव्य विचार । करवा चरणा चित्तधार ॥ ६॥ आचरवी अम्ह अनुमति श्हां । प्रजु वचने सावध हु किहां? ॥ वंदि प्रजु देसण संनले। तहत्त करत मिथ्या मत टले ॥६॥ मिथ्याति वा समकित धार।मुलह सुलह बोही संसार ॥ बहू अथवा थोमो मुऊ तणो । विराधक राधक ते सुणो ॥ ६ए ॥ अचरिम चरिम के हूं केहबुं। एम पूरे प्रजु ! बुंजेहबुं ॥ ते प्रसाद करि मुझने कहो। वीर नणे बीजो पद लहो ॥ ७० ॥ सुणि हरषित थ्यो नाटक जण। पूछे जगति प्रजु तुम्ह तणी॥ गौतम प्रमुख श्रमण मंमली । बागल नाचूं निज मन रली ॥ १ ॥ न आढे परियाणे नही। परिणा
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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