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श्री केशिमदेशीमबंध - स्वाध्याय.
उंचा मणिमय बे खूंटिला । मणिमय सीके तेह कूं पिला || जिन सकहा खेवी बे तिहां । मेहुण न सेवे सुरवर जिहां ॥ ५८ ॥ वंद्य पूज्य जिनराग ते जाए | मन आणे सकार समाए ॥ पुछिं: पहा करिवो एह । पहिलं पठे एहज मुऊ श्रेय ॥ ५७ ॥ सुख निश्रेयस तणो नियाण । हित अणुगामि एहज वे ठग ॥ एम संजलि हियमे गह गह्यो । समकित परिमल बहु महमो ॥ ६० ॥ इंद्रतणो हू अभिषेक | पुस्तक वाची धर्मविवेक || पामि चित्त प्रमोद न माय । जिन प्रतिमा पूजे समजाय ॥ ६१ ॥ सतर जेद कीधा तेहना । विस्तर सूल सूत्रे एहना ॥ उर्जा अठोत्तरसो श्रुति करे | बेसी श्रुति मंगल उचरे ॥ ६२ ॥ दंसण नाण चरणनो लाइ | अंत क्रियानो तेण उहाह ॥ उत्तरयणे गुणत्री समे । ए फल उत्तम मन वीसमे ॥ ६३ ॥ चिय वंदण एम अंग जवंग | जाणी करवो मनने रंग || घणा जाव पूज्या एकवार। ए हूइ करणी वारंवार ॥ ६४ ॥ इण विमा लहि अधिपति
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