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________________ २१२ श्री कैशिप्रदेशीप्रबंध-स्वाध्याय. नवि कह्यो तसु मुझ समो न को॥ ए ॥ कहे केशि परदेशि ! एह अनुमान न कीजे, गुरु उपदेश विमासी शुष्मति हिये धरीजे ॥ न्हाण विलेप विजूष अब्बसाटक पहिरेवी । धूप कमलुय गंध पुष्फ बहु हथ्थे धरेवी ॥ देनल माहे पेसतां को तेमे तुम्ह । संचारे वेसो सुन मिलवा आवो अम्ह ॥ १० ॥ तिहां राज ! तुम्ह जाउँ ? कहो अन्ह आगल साचो । बोले नृप क्षण एक तेहने वचने न राचुं ॥तिम जाणो नरगंध चार शत पंचय जोयण । जाइ देव नावंति अहव उपजे पळयण ॥ हिवां अमोरेमो जाश्सुमन चिंते ध। आज पहुचे नरतणो आवी किसुं? करे ॥११॥ जश् पुण अ सत्य तो पण हियमे मुफ नाव्यो। चोर एक निग्रही निविम बंधण बंधाव्यो ॥ माहे कुंनी लोह खिपी कीधो त्रपु मधित । जोयो मृत जखमी पात्र दीगे नहु लिजित ॥ चोर जीव किन नीसयों ? कहो मुक एह विचालि। कृत्रिम बागमे दाखव्यो नहिय जीव संसारि ॥ १२ ॥ गुरुनाषे परदेशि ! बार मुजित
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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