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श्री उत्तराध्ययनस्वनी सज्झायो. रहिये सदा । अणचीत्योरे जम न करे घाय, धर्म॥७॥ कीजे गुरु सेवा खरी । धरिये धर्मअन्यास ॥ आपण' श्म राखिये। जिम त्रूटेरे जीव मोहनो पास, धर्म ॥॥ मित्रपणुं जगसुं करो। परिहरि मननी रोस । ब्रह्म कहे अहनिश जपो । मन मांहेरे एक श्रीजगदीश, धर्म ॥ ए॥
इति असंखयागीतम् ॥ ४॥ श्री अकाम सकाम मरणीय समाय .
(बलिहारी तोरी कुखलडी-ए देशीमां)
जवजल निधिपारे पुहता श्रीजिनराय । तिण जाख्यो ए जव तरवा तणो उपाय ॥ जे जीव करे बहु पाप अने आरंन । चोरी परदारागमन करे बहु दंन ॥१॥जीव संजली जिणवर वाणी तणो विचार। जग अकाम सकाम बे मरण प्रकार ॥ जस विरति अने समकित नहीं तास अकाम । समकितव्रतधारक श्रावक साधु सकाम (ए आंकणी)॥ बहु पाप करे मणी खीर खांम घृत मीठो । नहीं पुन्य पाप