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१९४ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. युंजी। तो जल पहुतुं गमि ॥१०॥ धन्य० ॥ गंगाजल वाटे वयंजी। उबव करे नर राय ॥ मुनि मेघराज कहे ए सतीजी । तेरसमी सुर थाय ॥११॥ धन्य ॥ १४ श्रीशील विषमहासतीशेपदीनी सकाय.
(ब्रह्मदत्त कंपिलपुर राजीयोजी-ए ढाल.) कंपिलपुर छपदराजीयोजी। बेटी अपदी जाण ॥ तेहने अर्थे स्वयंवर मांगीयोजी । मिलीयाराणो राण ॥१॥ उत्तम आदर दीयोजी। शील रतन जगसार॥ जेहवी सुरनर संपद जोगवीजी। लहीए जवनो पार ॥२॥ उत्तम ॥ पहिलूं स्नान करिनृप कुंअरीजी। ते पूजे जिणवर देव ॥ पले सार श्रृंगारे सोचतीजी। आवे जिहां वासुदेव ॥३॥ १० ॥ अनुक्रमे जोती गयराणा सवीजी । आतमन्नाव रसेण ॥ पांमव पांचे परणे पदीजी । पूरवकर्म वसेण ॥ ४ ॥ 3 ॥ पांमव आव्या सवि हथणाउरेजी । अन्यदा तिहां ऋषिराय ॥ नारद सतीये बहु अपमानीयोजी अमर कंकाये जाय ॥ ५॥ उ० ॥ पदमनाज नृप आगल