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________________ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. १९३ जरण अलंकर्याजी। तसु दरिसण सुविहाण ॥२॥ धन्य० ॥ आंकणी॥ धनावो वाहण चमयोजी। सती निरवाहे एशील ॥ अन्यदा गोखे बेनी थकीजी। राए दीव सलील ॥३॥ धन्यः॥मोह्यो नृपती मुखेजी। पहिलो संदेसो दीध॥आव्यो रोहिणीने घरेजी।आगत स्वागत कीध ॥४॥ धन्यः ॥ एक जवानी रसवतीजी हामी तो घणिनाति॥ बेगे राजा जीमवाजी। स्वाद लहे एक जाति ॥५॥धन्य॥राजा पूडे ए किस्युंजी?। सघलो एक आस्वाद ॥राजन! वर्षे अंतरंजी। सघली एकज स्वाद ॥६॥धन्य॥सतीये नृप बोध्यो थकोजी। बहिनकरि धरि पत्त ॥ एहवे सेठ धनायहोजी । श्रापणे घरे संपत्त ॥७॥धन्य॥ दासी मुखे राजा तणुजी। सांजलि सर्व वृत्तांत ॥ राय छागले किम उगरेजी। नारि मिली एकांत॥॥ धन्या सेठ करे मन मपुंजी। एहवे वुगे मेह ॥ गंगा बिहु कांठे वहिजी। नगरतणाए तेह ॥ ए॥ धन्यः॥ तेहिज तटे आवी रोहिणीजी, बोले अमृतवाणी ॥ त्रिविधे में शील पाली
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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