________________
श्री एकादश गणधरनी सज्झायो. १५९ वरस बेतालीस गृहीयपणे । वसि चारित्र लिए मन जाय ॥ ३॥ वीर ॥ अतिहि अनोपम शिष्य पांचसें। दस वरस बउमथकाल ॥ वरस अढार लग केवलपणे । सर्वायु सत्तरि संचार ॥४॥ वीर०॥ देह रूप जीव संशय समझियो । महावीरे देव संयोग ॥ गणपति शिष्य गणधर गुण बोले । पामे सुजस ह लोग ॥ वीर ॥ इति
गणधर सज्कायम ॥४॥ (चंपापुरि पालक नामें-ए देशी.) चोथो गणधर जाणिये । व्यक्त नाम मुनि सोहे । नाइ मदतें आवीयो । ततखिण जिण पमिबोहे रे ॥ १॥ चोथो गणधर जाणीये। (आंकणी ) कैलाश संनिवेश जनमीयो ॥ धनमित्त तात महार रे ॥ वारुणी जणणी जग जयो । श्रवण नक्षत्रह सार रे॥॥ चोथो० ॥ गोत्र उत्तम नाराज । वरस पं. चास गृह वास रे ॥ बात्र सहित चारित्र लिये । पांचसे शिष्य उदहासरे ॥३॥ चो ॥ बार वरस -