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________________ १४८ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. aur वधारे क्रोध ॥ ८ ॥ चतु० ॥ स्त्री जरतार कथा संजलज्यो । धूरत पाकी राय ॥ बोट्या बोल विनोद विषादे । ते नवि पावा थाय ॥ ए ॥ चतु० ॥ नरथ दंग सबल ए भूषण | जाणी टाले जेह ॥ श्रीब्रह्म कहे सदा वखा । पुरुष शिरोमणि तेह ॥ १०॥ चतु०॥ || रति रति परिहार सज्जायम् ॥ १८ ॥ ॥ ( सुरतरुनी परे दोहिलोरे - ए देशी ) पंच विषय रति परिहरो रे । ढंको मोह मिथ्यात ॥ धर्मे रति न आणीये । परिहरिये रे विकथा ने वातके ॥१॥ सीख सुणो जीव सारी । मन चिह्न दिसिरे तूं करवाम ॥ रति ने रति वारी । एक राचो रे जिवरने नाम के । सीख सुखो जीव सारी (क) ॥ समकाले दोहिलारे । मन बंबित संयोग ॥ काम जोग सुख थोमिलुं । मायावीरे कपटी बहु लोग ॥ २ ॥ सीख० ॥ थर नवि थास्ये अति वो रे । जे उपनुं पुख्ख ॥ नीचलोक घणुं हीलस्ये ।
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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