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१२८ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. सेठ सुदंसण जाणीये। जस शील संजार ॥१२॥सं॥ सतीय सीता कमलावती। शिवा प्रौपदी नार॥प्रहसमे नाम सहए जपे । शील तणे आधार ॥१३॥सं॥ जस श्ह लोके तसु घणो। परनव सिद्धि पामे ॥ इंच मानवपति तेहने। विनये शिर नामे ॥ १४ ॥ सं०॥ वाम नव मन शुद्ध राखतां। जिको शील आराधे ॥ श्रीब्रह्म नमे नितु तेहने। जिन मारग साधे ॥१५॥सं॥
॥ परिग्रह परिहार सज्जायम् ॥५॥ (सुणो सुगा रे पूता संयम विसमू. अथवा आश्रव परिहरि
संवर मनधरि, जे पूरां व्रत पालेरे-ए देशी)
अतिघण तृष्णा मोटी इच्छा। मूल सबल जस दीसे रे। कलह कषाय महाथम जाहुँ। जे देखी सह हीसे रे॥१॥ धन धन ते मुनिवर चारित्र आदरी। परिग्रह वृद न पाले रे॥ वाहणसम नव सायर तारे। पंचम व्रत शुफ पाले रे॥॥ (आंकणी) बहु पर चिंता माल चिहुं दिसि। गारव त्रण लघु माल रे॥माया