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________________ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. १२७ समुचिमनी नही। सवि विणसए नोगे ॥३॥ सं०॥ दासि कुमारी विधवा जे ! गणिका परनारी ॥ संगति एहनी रे। तजो फूषण नारी ॥४॥ सं०॥ एहना प्रेम नवि थिर रहे। जिसा मेह अकालें ॥ चपल असती होय र । बेहो वहिल देग्वाले ॥५॥ सं० ॥ कूम कलह तणी कोठमी। अधोमी मल पूरी ॥ नवि ठरे लाख दीधे। थोमे थाए अणूरी ॥६॥ सं०॥ मन वचन तने निरमली। थोमी हुवे सुकुलीणी॥ स्वारथी लोनिणी रे। अति घणूं लीणी ॥७॥ सं०॥ रावण दस सिर रमवमयो। पर रमणि विकार ॥ संचारान जले वह्यो। ललितांग कुमार ॥॥संाहण्यो सहोदर मणिरथे। पर रमणी राते॥ पुंमरीके पण तिम कयु। विषया रसमाते ॥ ए॥ सं०॥ बेद नेदन नपूंसकपणूं । इहां लहे अपार ॥ नरक ताती लोह पूतली। सांझ ये अनिवार॥ ॥१०॥ सं० ॥ शोल गांगेय उपम नली। पर नारिनु वीर॥ सामी सुहम वखाणीये। नर शील सधीर॥१९॥ सं०॥ नेमि मबी थूलना वली। जंबू वयरकुमार॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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