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श्री ज्ञातामुत्रनी सज्झायो.
ढाल ३.
( कनक कमल पगलां० ए - देशी. ) राजऋषि पुंमरीक तिहां थकी रे, वे थेरा पासके ॥ चाजाम के धर्म आदरे ए, पाले मन उहास के ॥ १७ ॥ त्रिभुवने जेहनो जस विस्तरे ए | निर्मल गुण मंमार के || एहवा महामुनि सेवतांए । लही जवनो पारके ॥ १८ ॥ त्रिभुवने० ॥ यांकणी० ॥ as खमण ऋषि पारणेए । रस विरस जत्त लद्ध के || राजे आहार न ते जर्यो ए । शक्रस्तव तेणे किद्ध के ॥ १९ ॥ ६० ॥ चार आहार तेणे षिों पचखीयाए । शुज ध्यान कीधो कालके ॥ सब सिझें जई उपनोष । सीले विदेह विशालके ॥ २० ॥ त्रि० ॥ एम जे संयम आदरीए । वरजे जे कामजोग के ॥ इह लोके पूजा लहे ए । परजव मुगतिनो जोग के ॥ २१ ॥ त्रि० ॥ ज्ञाताअंगनीमति अनुसारुए । कीधीए
गणीस जासके॥ जे जिनवयण विराधीनं ए । मिच्छाटुक्क तासके ॥ २२ ॥ त्रि० ॥ श्रीपासचंद्रसूरि शि
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