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श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो.
आव्यो कंमरीक पास ॥ हाथ जोमीने तेहना गुण स्तवेजी। कमरीक चाल्यो विमास ॥ १० ॥ कर्म ॥ केते काले कंमरीक आवीयोजी। घुमरी गिणीने वास॥ आरत ध्याने मनमां पीमीयोजी । पुंमरीक वांदे उहास ॥ ११ ॥ क० ॥ धन्य २ तुं जलें सरज्यो महा मुनिजी । जीव्युं ताहरुं प्रमाण ॥ एम प्रशंस्यो पण नवि बोलीयोजी । कंमरीक वचन विनाण ॥१२॥ कम् ॥ पुंमरीक बोल्यो कंमरीक सांजलोजी। राज्यतणुं ने काज ॥ तव ऋषि कहे रे एमज जाणवूजी। कंमरीकने देश राज ॥ १३ ॥ कर्म० ॥ पुंरीक पोते संयम आदरेजी। कंमरीक बेठगे राज ॥प्रीणित नोजन की, तिणे दिनेजी। उपनी वेदन दाऊ ॥१४॥ कर्म० ॥ राज्य अंतेउर आरति ते मूजी । पहूतो सातमी गंम ॥ एम अनेरो संयम आदरीजी । वांबसे लोग प्रकांम ॥ १५ ॥ कर्म ॥ ते सुख लहसे कंमरीकनी परेंजी । हिवें घुमरीक मुनीस ॥ थेरा जगवन वांदी हुँ जिमुंजी । अनिग्रह करे सजगीस ॥ ॥ १६ ॥ कर्म ॥