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________________ १०२ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. ज० ॥ राय प्रतिबोधवा जणीजी, फरहोदक संऊकाल; मंत्रि अणावी नवे घमेजी, दिन प्रति घालेगाल । ॥१०॥ जग ॥ एम करतां अव्य घालतांजी, उदक रयण ते थाय; पाणी घर नरसुं पीजी, जिमीय चखूलिए राय ॥ ११ ॥ ज० ॥ राजा अति आणंदीउजी, पूब्युं मंत्री जेम; फरणेदकथी नीपमुंजी, राय करावें तेम ॥ १२ ॥ ज० ॥ उदक रतन वली नीपमुंजी, राजा श्रावक थाय; कालक्रमें संयम ग्रहेजी, मंत्री पण नले नाय ॥ १३ ॥ ज० ॥ अंग ग्यार बिहुं लणेजी, पामे केवलसार; मुगति रमणि बन्ने वरेजी, नर सुर करे जयकार ॥१४॥ ज० ॥ फरहोदक न्यायें करीजी सुबुझें बोध्यो राज; एम जविक नर बोधीएजी, पजणे मुनि मेघराज ॥ १५ ॥ ज० ॥ इतिश्री ज्ञाताद्वादशमाध्ययनफरहोदक न्याय सज्झायम् ॥१२॥ नंदमणीयारन्याय सज्जायम् ॥१३ ( ससनेहा गौतम-ए देशी) नयर राजगृह दीपतुंजी, गुणशैल वीर वर्धमान
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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