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श्री ज्ञातामूत्रनी सज्झायो. . १०१ ॥१॥ उत्तम नर संगति साधु करेसि, तो धर्म पामिस सुबुद्धिथी हो, जेम जितशत्रु नरेश ॥२॥ उत्तम ॥ आंकणी ॥मंत्रिसुबुद्धी जाणीयेजी,श्रावक बुद्धि नंमार ॥ नगरी बाहिर जलें जरीजी, खाइ एक असार ॥ ३॥ उत्तम ॥ गो अहि कूकरनां ममांजी, तेह पुरगंध वारि ॥ अन्यदा राय जमी करीजी. विटयो ने परिवारि ॥४॥उत्तम०॥ नात वखाणे वली वलीजी, सहू कहे हाजी एम॥तव राजा सुबुद्धिजी, वलि बलि पूढे तेम ॥५॥ उत्तम । सुबुद्धि कहे राजन सुणोजी, पुदगल एह सनाव ॥ रहुं ते मुं हुवेजी सुगंध पुरगंध नाव ॥ ६ ॥ उत्तम ॥ रायने मन मान्युं नहीजी, अन्यदा चमी हय खंध ॥ खाइ पासें नीकट्याजी, उबली तिहां पुरगंध ॥ ७॥ उत्तम ॥ मुह मचकोमवा लागीयाजी, मंत्री तिहां समन्नाव ॥ राय कहे अहो पामुयोजी, फरहोदक सदनाव ॥७॥ ज० ॥ मंत्री पूयुं एम कहेजी, राजन पुद्गल मर्म ॥ जे जूठं ते हुवे नमुंजी, कहे राय खोटो धर्म ॥ ए॥