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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. कहेरे, वचन एक हीयमे धरो ॥ नारी म धरज्यो चित्त मांहे, कही अश्वरूप ते करे । खंधे चमावि बेहु बंधव, सेलग यद सायर तरे ॥ ५ ॥ (ढाल २ राग मारुणी. कोई राखोरे मेघरथराय. ए देशो.) रयणादेवी आवी मंदिरे, बे बंधव नवि देखे रे; ज्ञान करीने जोयुं तेणीये, सेलग खंधे पेखे रे ॥६॥ मनावो रे प्राण आधार, कहेंती पू- धाई रे; जिनरखित जिनपालीओ, सेलग साथे जाई रे ॥७॥मनावो रे ॥ आंकणी ॥ विल विलती अंगमोमती, उपरे नाटक करती रे; हावनाव देखामती,आंखे यांसू जरती रे ॥ ॥ मना ॥ अबला एकलमी किसें, अपराधे मुफ बंमोरे, पूरव प्रीति वीसारिने, जणजण स्युं कां मंमो रे॥ए॥मनीरस निर्दय नीवर, जिनपालक सदा एहवो रे, जिनरखित रसीओ सदा,मीठगे जाण किये मेवो रे ॥१॥ म०॥ एकवार नयण निहालीए, किंकरी तुम्ह पाय लागे रे; जिनरखित प्रेम पूरीयो, जोवे देवी मुख रागे रे॥१९॥म॥सेलगपूरथी
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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