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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. धनसाहें कीधीरे ते घर स्वामिनी, एम जे महाव्रत पंच रे; रुमिपरे राखीने जेह वधारसे, ते सुख लहे सप्रपंच रे ॥ १६ ॥ ज ॥ एहवं जाणीने महाव्रत राखस्ये, तेहनां सीके काज रे; तसु जस परिमल चिहुं दिशि विस्तरे, प्रणमे मुनि मेघराज रे ॥ १७ ॥ जण ॥ इति श्रीज्ञाता सप्तमाध्ययन रोहिणी न्याय सज्झायम् ॥७॥ ॥ मल्लीन्याय सज्जायम् ॥७॥ (गोयम गणहर पाय प्रणमी करी-ए देशी) अपर विदेहेरे विजय सलिलावती, बलि नामें मोटोरे तिहां पृथ्वीपती; महाबल कुंअररे धारणि उर धयों, मित्र ब साथेरे ते नित्य परिवयोंः-परिवयों अन्यदा थविर पासे, कुंअर संयम आदरे, ब मित्र साथे कपट करतो महाबल तप अधिको करे; स्त्री वेद अरज्युं कपट करतां वीस थानक फरसतां, जिन नाम गोत्र उपारजीने जयंत पहुता तिहां हुतां ॥१॥ तिहाथी चवि करि जरत महिलापुरे, कुंन नरेसर प्रजावती उरवरें; महाबल सखर आवी अवतरियो,
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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