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________________ नमोत्थुणं लोगपइवाणं जो प्रज्ञा और प्रकाश का दीप प्रज्ज्वलित करते है वे भगवान हैं। जो प्रज्ञा और प्रकाश को प्राप्त कर प्रज्ज्वलित हो जाते हैं वे भक्त है। प्रगट करते हैं वे परमात्मा हैं और प्रगट हो जाते हैं वे देहात्मा हैं। जो स्वयं प्रगट होते हैं और अन्यों को भी प्रगट करते हैं वे लोक प्रदीप हैं। जो स्पर्श को प्राप्त कर ज्योतिर्मान हो जाते हैं वे आत्मदीप हैं। अनंत गणधरों ने जगत् के जीवों को परमतत्त्व के साथ जोडने के लिए लोगपइवाणं मंत्र का दान दिया। जहाँ लोक है वहाँ अंधकार है। लोक में भले ही अंधकार है परंतु लोक मे लोगपइवाणं भी है। लोगपइवाणं के प्रगट होते ही अनेक जन्मों के अंधकार का नाश होता है। कभी न बुझे ऐसे अनबूझ दीप जैसे अरिहंत परमात्मा लोक में जन्म लेते हैं, लोक में उजाला करते हैं और ज्योत पाने वालों को लोक के अग्रभाग तक ले जाते हैं। वहाँ ज्योत से ज्योत का स्पर्श होता है और ज्योत अनंत ज्योत में समा जाती है। ऐसे परमतत्त्व लोकप्रदीप के चरणों में हम नमोत्थुणं अर्पित करते हैं। भक्तामर स्त्रोत्र में कहा है, निर्धूमवर्तिरपवर्जित तैलपूरः, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि। गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोडपरस्त्वमसिनाथ! जगत्प्रकाशः।। परमतत्त्व रुप दीए को प्रगट करने के लिए तीन दीये हमारे सामने हैं। १. मिट्टी का दीपक, २. आत्म दीपक और ३. परमात्म दीपक। परमात्म दीपक को समझने के लिए मिट्टी के दीपक को समझना पडता है क्योंकि मिट्टी का दीपक उपमान है और उपमान के पांच उपकरण है - १. पात्रदीपक, २. बत्तीका अस्तित्त्व, ३. तेल का अस्तित्त्व, ४. वायु का प्रभाव-अभाव और ५. धूम्र का अस्तित्त्व। दूसरे हम है आत्म दीपक। प्रगट होने के लिए हमें चाहिए - १. स्वयं अस्तित्त्व, २. प्रगट होने की जिज्ञासारुप बत्ती, ३. श्रद्धा का तेल, ४. संकल्प का प्रभाव और ५. विश्वास का अस्तित्त्व। इसीतरह परमात्मारुप अस्तित्त्व दीये के उपमान से उपमीत है परंतु तुलना करनेपर संतुलन नहीं बनता है। जैसे परम अस्तित्त्व सदा प्रगट रहता है। शुभनाम कर्म के उदय से प्राप्त तीनों शुभ योगों की बत्ती है। तीसरे तैलपुरण की आवश्यकता नहीं होते हुए भी वीर्यंतराय कर्म के क्षय से उत्पन्न शक्तिरुप शाश्वत है। सामान्य दीपक वायु के प्रचंड वेग को बुझा देता है। परंतु परमात्मा तो अबूझ है मेरुपर्वत को उखाडकर फेंक देनेवाला प्रचंड वायु भी परमात्मा रुप दीपक को बुझा नहीं सकता है ऐसे अचल परमात्मा हैं। धुएं में कालापन होता है। परमात्मा समस्त उदयमान कषायों के परमाणुओं से रहित होने के कारण सदानिधूम होते है।
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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