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महावीर की साधना का रहस्य
दूर खड़े विजय की कामना कर रहे हैं। जहां पहुंचना चाहिए, पहुंच नहीं पा रहे हैं। वह विजय तब होंगी, जब हम गहराई में चलते चले जाएं और लते वहां पहुंच जाएं जहां कि शब्द का प्रवेश नहीं है, रूप का प्रवेश नहीं है, दूसरे विषयों का प्रवेश नहीं है। जहां उनका प्रवेश समाप्त हो जाता है, उस भूमिका तक पहुंच जाएं तब हमारी विजय होगी। इतनी गहराई में जाने का प्रयत्न नहीं होता तो इन्द्रिय-संवर नहीं होता । आप इन्द्रिय-संवर को ठीक से समझें । इन्द्रिय का संवर, इसका मतलब है आत्मा का दर्शन, परमात्मा का दर्शन या भगवान् का दर्शन । जिस दिन भगवान् का दर्शन हो गया हमारा सारा आकर्षण समाप्त हो गया। जब तक वह दर्शन नहीं हुआ तब तक यह आकर्षण और रस समाप्त होने वाला नहीं है । मूल में हमारा रस बदलना चाहिए। रस का परिवर्तन नहीं होगा तो वैसा कभी नहीं होगा । हमें करना है रस का परिवर्तन ।
शरीर के लिए इन्द्रिय-ज्योति की बहुत जरूरत है, बहुत जरूरत है । जो व्यक्ति अच्छे शब्द नहीं सुनता, उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता । अच्छे रंगों और रूपों को नहीं देखता, उसका मन प्रसन्न नहीं रहता । उसकी बुद्धि भी विकसित नहीं होती । जिसकी बुद्धि विकसित नहीं होती, उसकी इन्द्रियां भी ठीक काम नहीं करतीं । आप जाने दीजिए मनुष्य को । आप पशु जगत् में आइए, पक्षी जगत् में आइए, वनस्पति जगत् में आइए। आपको पता है या नहीं, आजकल ऐसे प्रयोग हुए हैं कि एक खेत में अच्छे-अच्छे संगीत की लहरियां वैज्ञानिकों ने प्रसारित कीं और पड़ोस के खेत में नहीं । वर्षा समान हो रही है । दोनों खेतों को खाद-पानी समान रूप से दिया जा रहा है । परन्तु संगीत की लहरी एक खेत को ही सुनाई जा रही है । वैज्ञानिकों ने देखा कि जिस खेत में संगीत की मधुर ध्वनियां थिरकती थीं, उसकी पैदावार ज्यादा हुई है । यह वनस्पति जगत् का प्रयोग है। आप पशु जगत् में देखिए । गायों को रेडियो सुनाया गया तो उनका दूध अधिक हुआ । जिन्हें गाने नहीं सुनाए गए, उनका दूध कम हुआ । छोटे-छोटे बच्चों को लोरी सुनाई जाती है. तो उन्हें नींद आ जाती है । शब्दों में भी ताकत होती है ।
विवेकानन्द अमेरिका से आए । एक व्यक्ति आया और बोलने लगा कि शास्त्रों में क्या पड़ा है, शब्दों में क्या धरा है ? विवेकानन्द ने कहा'बेवकूफ ! मूर्ख ! तुम बैठ जाओ ।' वह व्यक्ति क्रोध में आ गया । उ कहा - 'आप संन्यासी होकर ऐसा बोलते हैं ? आपने यह क्या किया ?