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________________ -प्राण की मात्रा इतनी तीव्र हो जाती है, वैराग्य का आवेश इतना तीव्र होता है कि उस समय मन अपने आप ही शान्त हो जाता है। प्राण पर ध्यान देने की जरूरत नहीं, और भी किसी पर ध्यान देने की जरूरत नहीं। कुछ भी जरूरत नहीं। अपने-आप मन एकदम शांत हो जाता है । वह है वैराग्य का रास्ता । पतंजलि ने भी कहा है-'अभ्यासवैराग्याभ्याम् ।' गीता में भी कहा है-'अभ्यासेन च कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते ।'-अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मन को वश में किया जा सकता है। अभ्यास किया जा सकता है। वैराग्य लाया नहीं जा सकता । बहुत कठिन बात है । अभ्यास एक मार्ग है। उससे किसी को चलाया जा सकता है । कहा जा सकता है कि तुम भी चलो। यदि मैं किसी से कहूं कि तुम वैराग्यवान् बन जाओ। विरक्त होना उसके वश की बात नहीं है । क्योंकि वह कोई पद्धति नहीं है । किसी व्यक्ति के मन में किसी घटना का असर या प्रभाव होता है और वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। तत्काल सारी गांठें खुल जाती हैं । सारे स्रोत खुल जाते हैं । शक्ति का विकास हो जाता है । आपने ऐसी अनेक घटनाएं सुनी होंगी। एक घटना घटित हुई और व्यक्ति का मन बिलकुल वैराग्य से भर गया और उसकी शक्तियां जागृत हो गयीं । वे किसी निमित्त से या किसी योग से घटित घटनाएं हैं। किन्तु यह निश्चित है कि वैराग्य की तीव्रता होते ही मन बिलकुल वश में हो जाता है, मन बिलकुल शांत हो जाता है, विलीन हो जाता है। • क्या स्वाध्याय मन को वश में करने का मार्ग नहीं है ? नहीं है, ऐसा तो हम नहीं कह सकते । स्वाध्याय, चिंतन या भावना का अभ्यास करने से मन शांत हो जाता है । उससे भी होता है । ऐसे अनेक मार्ग हैं, एक ही मार्ग नहीं है । वह भी मार्ग है और यह भी मार्ग है। मन को शांत करने के मुख्य मार्ग ये हैं-श्रुत की भावना, ज्ञान का अभ्यास, वैराग्य, आत्मज्ञान का अभ्यास, आत्मज्ञान का निरंतर विचार । केशी स्वामी ने गौतम स्वामी से पूछा, “यह मन-रूपी घोड़ा तो बहुत ही तेज और चालाक है । बहुत उद्दण्ड घोड़ा है। कंसे तुम इसे वश में करते हो ?" गौतम स्वामी ने कहा, "श्रु त की वल्गा के द्वारा, श्रुत की लगाम से . इसे मैं पकड़ लेता हूं और जब कभी दौड़ता है, लगाम के सहारे नियंत्रण में कर लेता हं।" ज्ञान भी मार्ग है, भक्ति भी मार्ग है । आप देखिए, बंगाल में चैतन्य महाप्रभु हुए हैं । वे न प्राण का ध्यान करते, न आसन करते, न और कुछ करते । किन्तु भक्ति के आवेश में इतने तन्मय हो जाते, ऐसे पागल
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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