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महावीर की साधना का रहस्य
नहीं होती । वह भाषा में नहीं बंधता । वह शब्दावली में बांधा नहीं जा • सकता । वह होता है अस्तित्व | हमारा अस्तित्व है असीम और हमारा व्यक्तित्व है ससीम | हमारा अस्तित्व है अनंत शक्तिशाली और हमारा व्यक्तित्व है शक्ति की एक धारा को संजोने वाला । उसमें शक्ति की थोड़ी-सी धारा बह रही है । हम अनंत अस्तित्व को छोड़कर, असीम अस्तित्व को छोड़कर ससीम व्यक्तित्व के पिंजरे में बैठे हुए पंछी अपने मन में मोद मना रहे हैं। क्या बुरा है, अगर वह पिंजरा टूट जाए ? क्या बुरा है, अगर वह दीवार टूट जाए ? इसमें थोड़ा-सा हमारा मोह पैदा हो गया है । अगर वह न रहे तो खतरा क्या है ? नुकसान क्या है ? अगर अस्तित्व की मर्यादा हमें प्राप्त हो जाए, अमर्यादित अस्तित्व हमें प्राप्त हो जाए, तो खतरा क्या है ? मैं समझता हूं कि जिन लोगों ने प्राण की धारा को स्थिर करने का प्रयत्न किया है, उन्होंने अपने व्यक्तित्व पर अवश्य ही किसी-न-किसी मात्रा में चोट की है । किन्तु वह व्यक्तित्व की चोट, व्यक्तित्व पर होने वाली चोट, उनके अस्तित्व को उजागर करने वाली है । इसमें मुझे कोई खतरा दिखायी नहीं देता । कोई कठिनाई मुझे दिखायी नहीं देती । यह चोट कुछ पाने के लिए होने वाली चोट नहीं है । किन्तु बहुत लाभ के लिए होने वाला संघर्ष और प्रहार है ।
हमारा अस्तित्व प्रकट कब होता है ? मन शान्त होता है तब अस्तित्व प्रकट होता है । मन की शान्ति के बिना अस्तित्व प्रकट नहीं होता । उसके लिए मन का शान्त होना जरूरी है । अस्तित्व और मन, ये दोनों साथ-साथ में बहुत कम रहते हैं । मन जब बहुत सक्रिय रहता है तब अस्तित्व सोया हुआ रहता है, और मन जब निष्क्रिय होता है, तब अस्तित्व जागता है और वहां अपना काम शुरू कर देता है । मन अस्तित्व के साथ चल नहीं सकता । अस्तित्व के साथ उसका निर्वाह नहीं हो सकता ।
ऊंट और गधा - दोनों मित्र थे। दोनों कहीं जा रहे थे। बीच में नदी आयी । नदी में पानी काफी था । जाते ही ऊंट तो चलने लगा । गधा रुक गया । ऊंट ने कहा, “रुकते क्यों हो ? चलो !" गधे ने कहा, "कैसे चलूं ? पानी बहुत है । डूब जाऊंगा ।” ऊंट ने कहा, "मैं चलता हूं।" वह गया । उसके कंधे तक पानी था । उसने कहा, ' : जब मैं चल सकता हूं, तब तुम क्यों नहीं चल सकते ? " गधे ने कहा, "तुम चल सकते हो परन्तु मैं डूब जाऊंगा । क्योंकि तुम्हारी ऊंचाई और है, मेरी ऊंचाई और है। मैं नहीं चल