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________________ शरीर का संवर जरूरत है । सूक्ष्म शरीर को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए साधनों की जरूरत है। उसने अपनी शक्ति के पोषण के लिए तीन साधन निर्मित किये हैं-स्थूल शरीर, मन और वाणी। यानी प्रकृति का एक ऐसा व्यूह अपने आस-पास रच लिया जिससे कि उसका भेदन न हो सके। आप जानते हैं कि अगर आपको खाने को न मिले, आप कितने दिन टिक पाएंगे ? हो सकता है कि पचास दिन टिक जाएं, हो सकता है कि सौ दिन टिक जाएं। आखिर यह शरीर छूट जाता है। अगर सूक्ष्म शरीर को भी खाने को न मिले तो वह कब तक टिक पाएगा ? उसे भी खाने को चाहिए । अपने शरीर को धारण करने के लिए कुछ सामग्री चाहिए। साधन चाहिए । वह कहां से आएगा ? उसका आयात कौन करता है ? सबसे बड़ा आयातक है स्थूल शरीर। __ यह स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के लिए आयात कर रहा है । सारी सामग्री खींच रहा है, तान रहा है, संप्रेषित कर रहा है। अगर यह बाहर से आयात न करे तो काम नहीं चल सकता। यह आयात करता है और वहां तक पहुंचा देता है। बाहर से लेता है और सूक्ष्म शरीर तक पहुंचा देता है। सूक्ष्म शरीर को पूरा पोषण मिल रहा है और वह टिक रहा है। वह टिक रहा है स्थूल शरीर के सहारे । वह टिक रहा है इस शरीर की प्रवृत्ति के सहारे। वह टिक रहा है मन की प्रवृत्ति के सहारे । और वह टिक रहा है वाणी की प्रवृत्ति के सहारे । यदि प्रवृत्ति के तीनों स्रोत, तीनों द्वार बन्द हो जाएं, स्थूल शरीर का द्वार बन्द हो जाए, मन का द्वार बन्द हो जाए और वाणी का द्वार बन्द हो जाए तो तो फिर सूक्ष्म शरीर टिक नहीं सकता। इसलिए यह इन्हें पोषण दे रहा है। इनका सिंचन कर रहा है। इनमें सक्रियता उत्पन्न कर रहा है। इनमें चंचलता उत्पन्न कर रहा है । क्योंकि चंचलता ही उसका जीवन है। इनकी चंचलता समाप्त होना सूक्ष्म शरीर का विनाश होना है। इसलिए सूक्ष्म शरीर कब चाहेगा कि यह शरीर चंचल न रहे, मन चंचल न रहे और वाणी चंचल न रहे। इसलिए महावीर ने मूल बात को पकड़ा कि यदि अपने अस्तित्व तक पहुंचना है तो सबसे पहले प्रवृत्ति का निरोध करना होगा। प्रवृत्ति का निरोध किए बिना यह सूक्ष्म शरीर अस्तित्व को प्रकट नहीं होने देगा। और अस्तित्व प्रकट नहीं होगा तो सारी साधना व्यर्थ चली जाएगी। आयास मात्र होगा, साधना का परिणाम नहीं होगा । इसीलिए और सब बातों को छोड़कर सबसे पहले प्रवृत्ति का निरोध
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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