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________________ शरीर का संवर पुराने जमाने की बात है । एक धनी-मानी व्यक्ति राजा के पास पहुंचा और उसने कहा, 'मुझे नगरसेठ बना दो। इतना सारा धन मैं आपको उपहार में देता हूं ।' राजा ने सुन लिया, उपहार लिया और उसे नगरसेठ बना दिया । उपाधि दे दी । नगरसेठ बन गया । नगरसेठ बनने में उसे बहुत कुछ नहीं करना पड़ा । कुछ देना पड़ा होगा धन । और कुछ नहीं करना पड़ा । उपाधि मिली, नगरसेठ बन गया । एक विद्यार्थी अध्यापक के पास गया और बोला, 'मुझे विद्वान् बना दो ।' अध्यापक ने कहा, 'तुम बन सकते हो । किन्तु जैसे वह नगरसेठ बना, वैसे तुम विद्वान् नहीं बन सकते । कुछ न कुछ करना पड़ेगा । बहुत कुछ नहीं करना पड़ेगा । जो स्मृति का यन्त्र है, उसे जागृत करना पड़ेगा। क्योंकि जो हम बाहर से पढ़ते हैं, उसमें हमारा आत्मीय बहुत नहीं होता। हमारा जो स्मृति-यंत्र है, उसे पुष्ट करना होता है । और उसे सक्रिय करना होता है । जिसका स्मृति-यंत्र पुष्ट हो जाता है, वह बाहर की बहुत सारी चीजें ले लेता है ।' अध्यापक ने श्रम किया और वह विद्वान् बन गया । इंग्लैंड का एक राजा था । उसका नाम था जेम्स । वह उपाधियां बहुत दिया करता था, और उपाधि देने में बहुत प्रसिद्ध था । एक प्रतिभाशाली पुरुष राजा के पास आया । राजा ने कहा, 'कहो, क्या चाहते हो ?' उसने कहा, 'मैं एक बात चाहता हूं, आशा है आप जरूर करेंगे ।' राजा ने कहा, 'बताओ, क्या चाहते हो ?' उसने कहा, 'आप मुझे सज्जन बना दें ।' राजा ने कहा, 'मैं तुम्हें ड्यूक बना सकता हूं, लार्ड बना सकता हूं, चार्ल बना सकता हूं, ये सारी उपाधियां दे सकता हूं किन्तु सज्जन नहीं बना सकता ।' यह तीसरी घटना है । सज्जनता आरोपित नहीं होती, वह जागृत होती है— प्रकृति से, आन्तरिकता से और अन्तर्मन से । यदि आरोपण होता, यदि कोई उपाधि होती तो जैसे ड्यूक, लार्ड और चार्ल बनाया जाता है वैसे सज्जन भी बनाया जा सकता था । किन्तु सज्जन बनाया नहीं जा सकता क्योंकि यह उपाधि नहीं है, आरोपण नहीं है ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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