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________________ महावीर की साधना का रहस्य शरीर से काम लेने के लिए बहुत सारी प्रक्रियाएं हैं। आज मैं इस पर चर्चा नहीं करूंगा। यह एक स्वतंत्र विषय है। उस पर मैं कभी समय से चर्चा करूंगा और यह प्रस्तुत करूंगा कि किन क्रियाओं के द्वारा हम सूक्ष्म शरीर को अधिक काम में ले सकते हैं, शक्तियां जागृत कर सकते हैं और उसे अपने लिए अधिक उपयोगी बना सकते हैं। किन्तु आज वह विषय नहीं है । आज का विषय है-स्थूल शरीर के बारे में हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए, और उसे हमें किस दृष्टि से देखना चाहिए। शरीर में और भी ऐसे अनेक केन्द्र हैं। हमारा सारा नाड़ी-संस्थान बहुत ही महत्त्व का है । जो नाड़ी-विज्ञान का ठीक ज्ञाता है, वह शरीर की शक्तियों का कितना उपयोग कर लेता है ! योग के आचार्यों का मत रहा है कि जो नाड़ी-विज्ञान और नाड़ियों में प्राण-वायू के संचार को नहीं जानता, वह बीसों वर्ष तक क्लेश करता रहे, उसे कोई भी उपलब्धि नहीं हो सकती। आपका पेट दुःखता है और नाड़ी दबाई जाती है पृष्ठरज्जु की। जो लोग इस विषय के जानकार होते हैं, वे नाड़ी के द्वारा हर विषय की चिकित्सा कर लेते हैं और उनका दावा भी है कि वे नाड़ी के द्वारा हर रोग की चिकित्सा कर सकते हैं। नाड़ियों की शक्ति से शायद हम परिचित नहीं हैं। नाड़ियों के इधरउधर करने से शरीर में कितने ही परिवर्तन हो जाते हैं। आप देखते हैं कि थोड़ी-सी नाड़ी टेढ़ी हो गयी, पीठ की हड्डी थोड़ी टेढ़ी हो गयी, अनेक विकृतियां शरीर में उत्पन्न हो जाती हैं। प्राणवायु उनमें ठीक से नहीं जाएगा। इसीलिए कहा गया कि जब ध्यान करो, आसन करो, बैठो, उस समय शरीर को बिलकुल सीधा रखो । आयुर्वेद में तो यहां तक है कि छींकना हो तो टेढ़ा होकर मत छींको । बात करनी हो तो टेढ़े होकर बात मत करो। भोजन करना हो तो टेढ़े होकर भोजन मत करो। किसी को देखना हो तो टेढ़े होकर मत देखो। ऐसा करने से शक्ति का क्षय होता है। टेढ़े होने से शक्ति क्षीण होती है । इसीलिए जो कुछ भी करना हो, सीधे होकर करो। ___ध्यान के आचार्यों का सीधा निर्देश है—'समग्रीवः'-ग्रीवा बिलकुल सीधी होनी चाहिए । पृष्ठरज्जु बिलकुल सीधा होना चाहिए, जिससे प्राणतत्त्व का प्रवाह सीधा रहे, वह टेढ़ा-मेढ़ा न हो । क्या आप सोचते हैं कि 'भगवान महावीर ने शरीर पर कोई ध्यान नहीं दिया ? बहुत ध्यान दिया था । भगवान् ने कभी भी अपने शरीर को अनुपयोगी नहीं बनाया । वे लम्बी
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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