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शरीर का मूल्यांकन
है । आप सोचेंगे, ध्यान का और अस्थि का सम्बन्ध क्या है ? बहुत गहरा सम्बन्ध है । हमारी शक्ति का मूल है— अस्थि । शरीर में हड्डियां भी हैं, मांस भी हैं और रक्त भी है । पर शक्ति के लिए सबसे अधिक मूल्य हड्डी का है, मांस
नहीं है । मूलत: हड्डी का सबसे अधिक महत्त्व है । जिसकी अस्थि मजबूत होती है, वही स्वस्थ माना जाता है । अस्थि खराब होती है, वह होता है बीमार | स्वास्थ्य का सम्बन्ध है हड्डियों से । हड्डियां जितनी मजबूत होती हैं, उतनी ही ताकत होती है ।
हम ध्यान करने के लिए बैठते हैं । हड्डियां मजबूत हैं तो दो-चार घंटे एक साथ बैठ सकते हैं । हड्डियां मजबूत नहीं हैं तो एक घंटे बैठना भी कठिन हो जाएगा । भगवती सूत्र का एक प्रसंग है । वहां भगवान् महावीर से गौतम स्वामी ने पूछा - 'वैक्रिय कौन कर सकता है ?' 'वैक्रिय शरीर का अर्थ जो हम समझे हुए हैं, उससे आगे भी हमें समझना होगा । वैक्रिय का मतलब केवल रूपों का निर्माण ही नहीं है । विभिन्न क्रियाएं करना भी वैक्रिय ही है । एक आदमी आसन करता है, इतने विचित्र आसन करता है, शरीर को बिलकुल गोल - मटोल बना लेता है । विभिन्न प्रक्रियाएं करता है यह कौन कर सकता है ? जिसकी हड्डियां लचीली हैं, वही कर सकता है । जिसकी हड्डियां कड़ी हैं, वह आसन नहीं कर सकता ।
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भगवान् ने गौतम स्वामी को उत्तर दिया कि जिसकी मज्जाएं सघन होती हैं, मांस और शोणित पतला होता है, वह सकता है । भगवती सूत्र में पूरी की पूरी एक प्रक्रिया बतलाई गयी अनुसंधान नहीं किया, इसलिए हम जान नहीं पाये । वहां बतलाया है कि जो आदमी स्निग्ध द्रव्यों का प्रयोग करता है, और प्रयोग करके उनका वमन कर लेता है-खाता है और फिर छोड़ता है, इस प्रकार करने वाला वैक्रिय कर सकता है । जो रूखा भोजन करता है, उसकी हड्डियां और मज्जा सघन नहीं होती, वह वैक्रिय नहीं कर सकता ।
बहुत सारे लोग समझते हैं कि जैन धर्म में रूखा-सूखा खाने का ही विधान है । वह हो सकता है, किन्तु केवल रूखा-सूखा खाने का ही विधान नहीं है । भगवान् महावीर ने अपना पहला पारणा किया खीर और मधु से ।
हड्डियां और
वैक्रिय कर
। हमने
जैन आगमों में बताया गया है कि भगवान् महावीर आदिवासियों के बीच में गए । आदिवासी लोगों ने भगवान् को बहुत सताया क्योंकि उनमें