________________
-२४
महावीर की साधना का रहस्य
- कुछ सात मानते हैं और कुछ नौ मानते हैं । भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं । एक चक्र है सीधी रेखा में और एक चक्र है हृदय के सामने । एक का नाम है हृदयचक्र और दूसरे का नाम है अनाहत चक्र । मैं समझता हूं कि अनाहत चक्र और मनःचक्र एक होना चाहिए। अनाहत, ध्वनि की भिन्नता और तन्मयता- इनमें शब्दों का भेद है, तात्पर्य में कोई भेद नहीं है । जब शून्यता की स्थिति प्राप्त हो जाती है, इन्द्रिय और मन का पूर्ण विलय हो जाता है, तब अनाहत ध्वनि सुनते हैं । अनाहत ध्वनि सुनना, तन्मय होना और शून्य होना- इनमें शब्दों का भेद है, तात्पर्य में कोई भेद नहीं है । चाहे अनाहत चित्र कहिए और चाहे मनःचक्र कहिए - दोनों में मुझे लगता है कि कोई तात्पर्य का भेद नहीं है ।
• आठ रुचक प्रदेश । उनका विकास होने पर जागरिका का विकास होता है, यह आपने कहा । उनका विकास होने पर समूची चेतना पर या समूचे प्रदेशों पर कोई प्रभाव पड़ता है ?
चेतना के कुछ क्षेत्र हैं और उन क्षेत्रों की जागृति सम्पूर्ण चेतना पर प्रभाव डालती है । यह हमारे चेतना के केन्द्र हैं, जहां ज्ञान तंतुओं या चैतन्य के प्रदेश संगठित रूप में होते हैं । उनका विकास होने से समूची चेतना का विकास होता ही है । वैसे तो आवरण होता है तो समूची चेतना पर होता है । विकास होता है तो समूची चेतना का होता है । ऐसा नहीं है कि चेतना का एक कोना आवृत होता गया और दूसरा कोना खुला रह गया, किन्तु एक स्थान ऐसा होता है जहां चोट करने पर सारा का सारा झनझना उठता है । यदि हम पोली जमीन पर किसी चीज को कूटते हैं तो सारा झनझना उठता है। और वही चीज ठोस जगह पर कूटते हैं तो थोड़ा-सा हिस्सा प्रकम्पित होता है। जहां चेतना के प्रदेश बहुत संगठित होते हैं, वहां कोई चोट लगती है तो सारी चेतना में भारी प्रकंपन पैदा कर देती है । एक स्थान ऐसा भी होता है जहां चोट लगने पर कोई विशेष अन्तर नहीं होता । यह क्षेत्रों का अन्तर है । केन्द्र के माध्यम से दूसरे प्रदेश का अन्तर है और यह स्वाभाविक बात है ।
सम्यक दर्शन के लिए जागरिका क्यों आवश्यक है ? के भेवन के लिए प्राणायाम की आवश्यकता है। है, जैन दर्शन में प्राणायाम का विरोध किया गया है। •अनुसार मनःचक्र के मेवन की क्या प्रक्रिया है ?
•
आपने कहा कि मनः
जहां तक मुझे खयाल
तो फिर जैन-वर्शन के