SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राणायाम : एक ऐतिहासिक विश्लेषण है, वह सम्यसिद्ध को प्राप्त करता है । " मनोविज्ञान के अनुसार श्वास नैसर्गिक प्रवृत्ति है । वह प्रयत्न किए बिना ही आता-जाता है | किन्तु चित्त के अभाव में यह स्थिति नहीं रहती । ध्याता जब निश्चितीकरण की भूमिका में आरूढ़ होता है तब चित्त का अभाव हो जाता है । उसके अभाव में श्वास का भी अभाव हो जाता है । वह प्राणायाम की विशिष्ट भूमिका है । चर्चित विषय को निष्कर्ष की भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता ३०७ १. जैन आचार्य तीव्र प्राणायाम के समर्थक नहीं थे । वे उसे मानसिक एकाग्रता का हेतु नहीं मानते थे । २. सूक्ष्म प्राणायाम का समर्थन ही नहीं, अभ्यास भी करते थे । ३. सूक्ष्म प्राणायाम की परम्परा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में ही नहीं, आगमतुल्य ग्रन्थों में भी प्राप्त होती है । भद्रबाहु स्वामी ने सूक्ष्म प्राणायाम के साथ धर्म्य और शुक्लध्यान करने की विधि का निर्देश किया है । ४. श्वास की सामान्य प्रक्रिया का अभ्यास कुछेक मुनि नहीं करते थे । किन्तु प्रायः सभी करते थे और विशिष्ट प्रक्रियाओं का अभ्यास विशिष्ट ज्ञानी मुनि करते थे । ५. दीर्घकालीन कुम्भक या उच्छ्वासनिरोध सामान्य भूमिका में निषिद्ध था । चतुर्दश पूर्वी मुनि या वैसे शक्ति-संपन्न मुनि ही उसके लिए अधिकारी होते थे । आवश्यक निर्युक्तिगत उच्छ्वास निरोध का निषेध साधारण शक्ति वाले अधिकारी तथा चामत्कारिक प्रलोभनों में फंस जाने वाले अल्पश्रु त मुनियों के लिए ही किया गया प्रतीत होता है । इन निष्कर्षो के आधार पर हम जैन परम्परा में प्राणायाम की आज विस्मृत किन्तु चिरंतन पद्धति को अस्वीकृति नहीं दे सकते । १. यशस्तिलकचंपू ३९ : मन्दं मन्दं क्षिपेद् वायुं मन्दं मन्दं विनिक्षिपेद् ॥ न क्वचिद् वार्यते वायुः, न च शीघ्रं प्रमुच्यते ॥७१६|| पवन - प्रयोग - निपुणः, सम्यक् - सिद्धो भवेदशेषज्ञः ।। ६०३ || २. ध्यानविचार, नमस्कार स्वाध्याय, पृ० २४३ : चित्तं त्रिकालविषयं, चिंतनं तदभाव उच्छ्वासाभावहेतुः । ३. आवश्यक निर्युक्ति १५१४ : आवश्यक नियुक्ति अवचूर्णि, पृ० २२१ : ताव हुमाणुपाणू, धम्मं सुक्कं च भाइज्जा ॥
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy