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जैन परम्परा में ध्यान : एक ऐतिहासिक विश्लेषण
२६१ पद्धति क्या थी, उसका भी स्पष्ट बोध होना चाहिए । ये दोनों बातें स्पष्ट हों तो स्वीकार करना, तुलना करना, समन्वय करना कोई बुरी बात नहीं है। किन्तु जहां ये दोनों बातें स्पष्ट नहीं होती तब निश्चित ही एक विकट स्थिति पैदा हो जाती है। और सचमुच ध्यान के क्षेत्र में यह स्थिति पैदा हुई है। हमारी साधना-पद्धति में ध्यान प्रधान था, वहां अब जप प्रधान हो गया। समूचे जैन समाज पर दृष्टि डाली जाए तो पता चलेगा कि जप करने वाले यदि दस प्रतिशत हैं तो ध्यान करने वाले एक प्रतिशत भी नहीं हैं। इसका कारण यह है कि ध्यान का महत्त्व हमारे सामने स्पष्ट नहीं है।
उक्त तथ्य को मैं एक घटना का उल्लेख कर स्पष्ट करना चाहूंगा । 'नासा' का एक वैज्ञानिक बर्मा में आया। उसने विपश्यना के महान् साधक 'ऊ बा खिन सियाजी' से भेंट की। उनसे मन की शांति के बारे में पूछा । उन्होंने उसे विपश्यना ध्यान सिखाया । वह धातु-शोधन का अधिकारी वैज्ञानिक था । उसने अनुभव किया कि ध्यान से शांति मिलती है, शारीरिक दोष भी मिटते हैं । पर ऐसा क्यों होता है ? उसने उसकी खोज प्रारम्भ की। फिर अपने गुरु के पास बर्मा आया। चर्चा के दौरान उसने बताया कि विपश्यना ध्यान की 'धातु-शोधन' की पद्धति से तुलना की जा सकती है । अंतरिक्ष-यान के लिए पूर्णतः शुद्ध धातु अपेक्षित होती है। यदि वह शुद्ध न हो तो अंतरिक्ष-यान मजबूत नहीं हो सकता, तेज गति से नहीं चल सकता । आप कल्पना करें कि धातु के एक दंड में एक अरब कण हैं। उनमें यदि एक कण भी अशुद्ध रह गया तो यान टूट जाएगा । उसके सारे के सारे कण शुद्ध होने चाहिए । धातु-शोधन की प्रक्रिया यह है- अशुद्ध धातु को शुद्ध करने के लिए अशुद्ध धातु के दंडे पर शुद्ध धातु के छल्ले घुमाए जाते हैं । उस दंडे में से विजातीय कण निकलते जाते हैं और वह दंड शुद्ध होता चला जाता है । स्पर्श की जरूरत नहीं । वे छल्ले ऊपर घूमते रहते हैं और धातु के विजातीय कण निकल-निकलकर बाहर जाते रहते हैं । उसने बताया-विपश्यना के द्वारा भी इसी प्रकार शोधन होता है । हम सिर से पैर तक शुद्ध चैतन्य की एक धारा को प्रवाहित करते हैं तब हमारी अशुद्ध चेतना में मिले हुए विजातीय तत्त्व बाहर निकल जाते हैं । इस प्रकार चेतना का शोधन होता है और उससे मन और शरीर के दोष भी दूर होते हैं । जैन साधना पद्धति की भाषा में यह निर्जरा की प्रक्रिया है । हमारे प्राचीन आचार्यों ने इसे स्वर्ण और अग्नि के उदाहरण से समझाया है। जिस प्रकार मिट्टी मिला हुआ सोना अग्नि में