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________________ जैन परम्परा में ध्यान : एक ऐतिहासिक विश्लेषण २७३ यह पद्धति आचार्य कुन्दकुन्द के समय तक (वीर निर्वाण की छठी शताब्दी तक) चलती रही। उसके बाद उसमें परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो गई। परिवर्तन का क्रम कुन्दकुन्द से पहले ही प्रारम्भ हो गया था । भगवान् महावीर के समय में हमारे मुनि उक्त पद्धति से ध्यान का अभ्यास करते थे । उन्हें ध्यान के रहस्य ज्ञात थे । भगवान् महावीर के शिष्यों में सैकड़ों केवलज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी थे। पूर्वजन्म की स्मृति वाले श्रमणों और श्रमणोपासकों की संख्या बहुत बड़ी थी। सैकड़ोंसैकड़ों की संख्या में लब्धिधर (योगजविभूति-सम्पन्न) मुनि थे। चतुर्दशपूर्वी मुनि भी बहुत थे। उन्हें 'सूक्ष्म आनापान' लब्धि प्राप्त थी। वे आनापान को इतना सूक्ष्म कर लेते थे कि चौदह पूर्व की विशाल ज्ञानराशि का एक अन्तमहत (४८ मिनट) में परावर्तन कर लेते थे । ध्यान की विशिष्ट साधना के बिना ये उपलब्धियां सम्भव नहीं थीं । भगवान् के निर्वाण की दूसरी शताब्दी तक यह क्रम अविच्छिन्न रूप से चलता रहा । आचार्य भद्रबाहु चतुर्दशपूर्वी थे। उन्होंने बारह वर्ष तक 'महाप्राण' की साधना की थी । आनापान की सूक्ष्मता होने पर ध्यान की चरम सीमा प्राप्त होती है । जैन संघ में विच्छेदों की एक लम्बी तालिका प्रस्तुत हुई । कहा जाने लगा कि केवलज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, परम अवधिज्ञान, यथाख्यात चारित्र, सूक्ष्मसंपराय चारित्र आदि-आदि विच्छिन्न हो गए हैं। ___ आचार्य भद्रबाहु के बाद इसमें एक बात और जुड़ गई कि चतुर्दश पूर्वो का ज्ञान भी विछिन्न हो गया है । इस विच्छेद के क्रम में ध्यान के विच्छेद की चर्चा भी शुरू हो गई। आचार्य कुन्दकुन्द के समय तक यह चर्चा पुष्ट हो चुकी थी। उन्होंने मोक्ष पाहुड़ में लिखा है-'कुछ मुनि कहते हैं कि पांचवें आरे में ध्यान नहीं हो सकता । यह ध्यान के लिए उचित काल नहीं है ।" १. मोक्ष पाहुड़, ७३-७६ : चरियावरिया वदसमिदिवज्जिया सुद्धभावपन्भट्ठा । केई जंपति णरा ण हु कालो झाणजोयस्स ।।७३।। सम्मत्त णाणरहिओ अभव्वजीवो हु मोक्खपरिमुक्को । संसारसुहेसु रदो ण हु कालो भणइ झाणस्स ।।७४।। पंचसु महव्वदेसु य पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु । जो मूढो अण्णाणी ण हु कालो भणइ माणस्स ॥७५।। भरहे दुस्समकाले धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स । तं अप्पसहावठिदे ण हु मण्णइ सो वि अण्णाणि ॥७६।।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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