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________________ तप समाधि इस दुनिया में जीने वाला कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो ताप से परिचित न हो । गर्मी से, अग्नि से हर आदमी परिचित है । क्योंकि ताप के बिना जीवन नहीं चलता । ताप की, ऊष्मा की, गर्मी की जरूरत है, इस स्थूल शरीर के लिए भी और इससे परे भी। ___ हम जब कभी सोचते हैं तो इस स्थूल शरीर के संदर्भ में सोचते हैं । कभीकभी आत्मा की भी बात करते हैं। आत्मा तो बहुत सूक्ष्म है। आत्मा और इस स्थूल शरीर के बीच में एक नई दुनिया और है। बहुत बड़ी दुनिया है वह । यदि हम उस बीच वाले जगत् को जान लेते हैं तो तप की बात ठीक समझ में आ जाती है। यह एक दृश्य शरीर है। यह उदार है यानी सघन और स्थूल पुद्गलों से बना है। इसके पुद्गल ठोस और सघन हैं, बड़े हैं, स्थूल हैं, इसलिए हमें दिखाई देता है यह । इसके भीतर कुछ शरीर और हैं जो सूक्ष्म और विरल पुद्गलों से बने हैं, इसलिए हमें नहीं दीखते । उनका पता नहीं चलता । शरीर-शास्त्रियों को भी पता नहीं चलता। वे भी कहते हैं—ये सूक्ष्म शरीर हैं कहां ? शरीर की पूरी शल्य-चिकित्सा करके देख लेने पर भी नहीं दीखते । किन्तु जिन्होंने अन्तदष्टि से देखा, कार्य-कारण के संबंध से देखा तो उन्होंने कहा कि शरीर के भीतर भी और शरीर हैं । स्थूल शरीर के बाद आता है तैजस शरीर । इसे तप शरीर भी कहते हैं। इसे विद्युत् का शरीर, ऊर्जा का शरीर या प्राण का शरीर कहते हैं। यह सूक्ष्म है, दिखाई नहीं देता । स्थूल शरीर की सारी शक्ति, गतिशीलता, हलन-चलन जो कुछ है, वह सारी की सारी तैजस शरीर के कारण है। यदि वह सक्रिय न हो तो शक्ति नहीं मिल सकती। लकवा मार गया और शरीर निष्क्रिय हो गया। इसका मतलब है कि तेजस शरीर का सम्बन्ध वहां से टूट गया। विद्युत् शरीर का सम्बन्ध वहां से टूट गया। वह निष्क्रिय हो गया। जहां-जहां तैजस शरीर का सम्बन्ध टूट जाता है, वहां-वहां निष्क्रियता आ जाती है । शरीर जड़ हो जाता है, स्तब्ध हो जाता है । हमारी सक्रियता का मूल कारण है तैजस शरीर । वह विद्युत् का है,
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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