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________________ २२२ महावीर की साधना का रहस्य या ज्ञान केंद्र में ले जाते हैं या ज्ञान-केन्द्र से नीचे नहीं उतरने देते तब स्थितात्मा हो जाते हैं । इस स्थिति में राग-द्वेष नहीं सताते । क्षोभ और मोह नहीं सताते । आवेश और वासनाएं नहीं सतातीं । यह ज्ञान का स्थान है और वह वासना का स्थान है । हमारी एकाग्रता से हमें ज्ञान प्राप्त हुआ और ज्ञान के बाद हम सत्य में एकाग्र हो गए, एकाग्रता की स्थिति आ गयी । हम उस धारा को नीचे नहीं ले जाते, उसे नीचे नहीं उतरने देते । नीचे उतरने नहीं देने का अर्थ ही है कि हमारी वृत्तियों में परिवर्तन आ गया है । इसे कहते है—अन्तर्मुखता। बहिमुखता की बात समाप्त होकर अन्तर्मुखता प्राप्त हो जाती है । उस स्थिति में इंद्रियां बदल जाती हैं, मन बदल जाता है । जो इंन्द्रियां किसी दूसरी ओर दौड़ रही थीं, वे अपने आप में प्रत्याहृत अथवा प्रत्याहार की स्थिति में आ जाती हैं । मन जो बाहर की ओर जा रहा था वह भी अन्तमुख हो जाता है, संयमित हो जाता है । प्रतिसंलीनता फलित हो जाती है । इसका अर्थ है अपने आप में लीन होना । प्रतिसंलीनता घटित होती है । इन्द्रियां जो बाहर की ओर दौड़ रही थीं, वे अपने-आप में लीन हो जाती हैं । जो बच्चा घर से बाहर चला गया था, वह पुनः घर में आ जाता है । मन का पंछी जो बाहर की ओर जाना चाहता था, वह थककर पिंजड़े में आकर बैठ जाता है । बाहर जाने की स्थिति समाप्त । उनका क्रम बदल जाता है । स्थितात्मा की स्थिति प्राप्त होती है। ज्ञान जब ज्ञान-केन्द्र में ही रहता है, ज्ञान की धारा जब ज्ञान-केन्द्र में ही रहती है तब आदमी स्थितात्म हो जाता है। वह इतना स्थिर बन जाता है कि कुछ भी करने को शेष नहीं रहता। स्थितात्मा ही दूसरों को स्थित बना सकता है। चल व्यक्ति किसी को स्थित नहीं बना सकता। स्थितआत्मा ही स्थित बना सकता है। ज्ञान समाधि के क्रम में सबसे पहले ज्ञान है, चाहे वह पुस्तकीय ज्ञान ही क्यों न हो। वह गलत नहीं है। शास्त्रों में हजारों-हजारों व्यक्तियों के अनुभव संदृब्ध हैं। उनका स्वाध्याय करने का अर्थ है कि हजारों-हजारों अनुभवों से लाभ उठाना। कुछ लोग शास्त्रों के स्वाध्याय का खंडन करते हैं । यह खंडन ज्ञान का नहीं होना चाहिए । खंडन होना चाहिए संवेदन का। हम कहीं से जानें-पुस्तक को पढ़कर जानें, सुनकर जानें, कहीं से भी जानें, अगर ज्ञान है तो कोई कठिनाई नहीं है । ज्ञान कभी नहीं भटकता । भटकता है संवेदन । ज्ञान और संवेदन को ठीक तरह से समझ लें तो सारी समस्याएं सुलझ जाती हैं । इनको
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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