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________________ महावीर की साधना का रहस्य लहो।" मिक्ष स्वामी मरण को स्वीकार कर साधना के मार्ग पर चले । यह क्यों ? इसका उत्तर है-उनकी चेतना की समग्रता या अखंडता। उनकी चेतना लक्ष्य पर इतनी अखण्ड हो गयी कि उसके सिवाय कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं रहा । जब मन में कोई दूसरा विकल्प होता है तब आदमी चुनाव करता है और वह उस मार्ग को चुनता है जो अधिक सुखद होता है। निर्विकल्प चेतना कोई चुनाव नहीं करती। वह जिस दिशा में चल पड़ती है, उस दिशा के पार पहुंच जाती है । जिस दिन लक्ष्य के प्रति चेतना की अखण्डता प्राप्त हो जाती है, उस दिन साधना का प्रश्न समाहित हो जाता है । वह अखण्डता पाने की आकांक्षा में नहीं होती। हम पाने की आकांक्षा में दौड़ते हैं । साधना इसलिए करते हैं कि यह मिल जाए, वह मिल जाए । जब तक 'मिलने' का विकल्प शेष रहता है तब तक निर्विकल्प साधना का मर्म हम नहीं समझ पाते । जिस दिन पाने की बात को छोड़कर मरने की या खोने की बात समझ लेंगे, उस दिन सही अर्थ में साधना का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। • क्या साधना का उद्देश्य चेतना को केन्द्रित करना ही है या कुछ और भी ? ___ यह सही है कि बिखरी हुई चेतना को समेटना, खण्ड-खण्ड में बंटी हुई चेतना को अखण्ड करना-साधना का उद्देश्य है । विशेष परिस्थिति में मनुष्य बटोरता है । शक्ति को बटोरकर ही आदमी बड़ा काम कर सकता है। उसे बटोरे बिना कोई बड़ा काम नहीं कर सकता। साधना का पहला और अन्तिम अर्थ है-चेतना को बटोरना और चेतना के खण्डों को जोड़-जोड़कर अखण्ड कर देना । चेतना को अखण्ड बनाने के उद्देश्य में अन्य पारमार्थिक उद्देश्य सहज ही जुड़े हुए हैं। . भावात्मक और अमावात्मक चेतना से आपका तात्पर्य क्या है ? क्या ये दोनों हर व्यक्ति में होते हैं ? __स्त्री में स्त्री के गुण-धर्म भावात्मक चेतना और स्त्री में पुरुष के गुण-धर्म अभावात्मक चेतना है । पुरुष में पुरुष के गुण-धर्म भावात्मक चेतना और पुरुष में स्त्री के गुण-धर्म अभावात्मक चेतना है। जो गुण-धर्म पूरे रूप में विकसित हो जाता है, वह भावात्मक चेतना है । वह पॉजीटिव धर्म है । उसमें एक नेगेटिव धर्म रहता है । वह निषेधात्मक है । वह प्रकट नहीं होता, भीतर में विद्यमान रहता है । ये दोनों शक्तियां हर व्यक्ति में मिलती हैं। सामग्री का बल मिलता है तो भावात्मक शक्ति प्रकट होने लगती है और अभावात्मक
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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