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________________ २०४ महावीर की साधना का रहस्य वस्तुएं प्रकम्पन पैदा करती हैं, उन प्रकम्पनों से हमारा ध्यान जुड़ता है । इन दोनों का योग होता है तब सुख या दुःख का अनुभव होता है । अगर इनका योग न हो, तो न सुख की अनुभूति होती है और न दुःख की अनुभूति होती है । एक आदमी अनमना है, चिंतातुर है या कोई बाहरी रोग से ग्रस्त है या आपत्ति में हैं, उस समय भी वह खाता है, किंतु स्वाद का अनुभव नहीं करता। अनमना होने के कारण उसका ध्यान अन्यत्र केन्द्रित रहता है, इसलिए खा लेने पर भी उसे पता ही नहीं रहता कि उसने कुछ खाया है । अनमाने व्यक्ति को न सुख का अनुभव होगा और न दुःख का अनुभव होगा। प्रकम्पन पैदा हुआ और हमारा ध्यान उस प्रकम्पन से जुड़ गया, तब सुख या दुःख का अनु-भव होता है। प्रकम्पन वस्तु के योग से भी पैदा हो सकता है, कल्पना से भी हो सकता है और वैज्ञानिक पद्धति से भी हो सकता है, यांत्रिक पद्धति से भी हो सकता है । एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक 'साइटर' ने प्रकम्पनों का सूक्ष्मतम अध्ययन किया । उसने उन प्रकम्पनों के आधार पर एक यंत्र बनाया। उसका नाम रखा 'विद्युत् वाहक इलेक्ट्रॉन' । उस यंत्र से संबंधित एक तार एक चूहे के माथे में लगाया और एक बिजली का बटन उसकी टांग के पास लगा दिया। बटन को दबाते ही चूहे में हरकतें होने लगीं। परिणाम यह आया कि चूही को देखकर उसके मन में जैसे प्रकम्पन पैदा होते थे, वैसे ही प्रकम्पन बटन के दबाने से होने लगे । वैज्ञानिक दिन भर बटन दबाता रहा और चूहे में वैसी हरकतें होती रहीं। अन्त में चूहा थककर चूर हो गया । इसका निष्कर्ष यह हुआ कि घटना से जो प्रकंपन पैदा होते हैं, वैसे ही प्रकम्पन यंत्रों के द्वारा भी पैदा किये जा सकते हैं। कल्पना में जो रस है, वह सही घटना में नहीं है । कल्पना में होता क्या है ? जो सही घटना में प्रकम्पन पैदा होते हैं, वे कल्पना में भी पैदा होते हैं । 'मानसिक भोग' और क्या है ? वह प्रकम्पन ही तो है । सुख का अनुभव होता है प्रकम्पन से; फिर चाहे वह प्रकम्पन यथार्थ वस्तु से हो या विद्युत्वाही किसी यंत्र से हो । मुख्य बात है-प्रकम्पन पैदा करने की। हमारे भीतर भी प्रकंपन पैदा होते हैं और उनके साथ ध्यान जुड़ने के कारण हमें सुख-दुःख की अनुभूतियां होती हैं। सामायिक का अर्थ क्या है ? इसका अर्थ है प्रकम्पनों को समाप्त करना । प्रकम्पनों को बन्द कर देना, उत्पन्न न होने देना, यह है समभाव । इसे 'संवर'
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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