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________________ सामायिक समाधि सड़क कीचड़ से लबालब भरी थी। एक मोटर आयी और उसमें फंस गई। कार चालक ने इधर-उधर देखा । एक आदमी दौड़ा-दौड़ा सहायता के लिए आया। दोनों ने जोर लगाया और मोटर कीचड़ से बाहर निकल गई। मोटर-चालक ने उस आदमी को पांच रुपये दिए और पूछा-'तुम्हें तो बहुत कमाई हो जाती होगी ? रात को और अधिक ।' वह बोला-'नहीं, बाबूजी! रात में कोई कमाई नहीं होती, दिन में ही कुछ मिल जाता है ।' 'अरे ! ऐसा क्यों ? रात को तो मोटरें और अधिक आती होंगी?' उसने कहा'बाबूजी ! रात को तो मैं मेहनत करता हूं। सड़क पर पानी डालता हूं। सुबह तक कीचड़ तैयार हो जाता है और फिर आने-जाने वाली मोटरें फंसने लग जाती हैं, मेरी कमाई प्रारम्भ हो जाती है । आप देखें, कीचड़ बनाने वाला और कीचड़ से उबारने वाला एक व्यक्ति है। वही फंसाता है और वही निकालता है । हम भी ऐसा ही करते हैं। स्वयं ही अपनी कार को फंसाते हैं और स्वयं ही उसे निकालते हैं। दोनों साथ-साथ चल रहे हैं। हम स्वयं ही विषमता पैदा करते हैं और स्वयं ही समता का प्रयत्न करते हैं। विषमता पैदा करने वाला भी कोई दूसरा नहीं है और समता पैदा करने वाला भी कोई दूसरा नहीं है । हम समता का प्रयत्न तब करते हैं जब विषमता की मात्रा बढ़ जाती है । वह हमें सताने लग जाती है, तब समता की बात सोचते हैं। हमें लगता है कि समता अच्छी है, उससे बढ़कर दुनिया में कोई अच्छी बात नहीं हो सकती। उसका अपना मूल्य है। मैं समझता हूं कि साधना के क्षेत्र में सर्वाधिक मूल्य किसी का है तो वह है समता का। उससे अधिक किसी का मूल्य नहीं है। हम साधक हैं। हम साधना करते हैं। साधना का प्रयोजन है-कषाय का विवेक, कषाय को दूर करना। कषाय का अर्थ है-क्रोध, मान, माया और लोभ । यदि हम साधना करते हैं और उनकी निष्पत्ति के रूप में कषाय का विवेक नहीं होता, कषाय की कमी नहीं होती है तो मान लेना चाहिए कि
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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