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________________ महावीर की साधना का रहस्य । दिनभर परिश्रम से थककर चूर हो जाता है। शाम को घर आता है । वह देखता है कि स्त्रियां घर में बैठी हैं। कोई मित्र आता है और पूछता है* बहुत थके हुए दिखायी दे रहे हो ?' यह खीज के साथ उत्तर देता है'पुरुष होना अपराध है । पुरुष और माथापच्ची - दोनों एक साथ चलते हैं । कितना अच्छा है स्त्री होना ! कितना अच्छा होता यदि मैं स्त्री होता ! दूकान में जाना नहीं । बही खातों की परेशानी नहीं । ग्राहकों की माथापच्ची नहीं । राज्य के कर्मचारियों की जी हुजूरी नहीं कमाने की चिंता नहीं । कोई नहीं । कितना अच्छा है स्त्री होना ! हे भगवान् ! मैं भी स्त्री होत ! बहुत अच्छी बात है स्त्री होना । पुरुष होना बड़ा भंझट है ।' उसने यह बात बहुत साधारण भाव में कही । किन्तु वह कल्पना उसके मन में घर कर गयी। दूसरे दिन फिर घर जाता है और वही बात कहता है । कल्पना पुष्ट होती है । बाहर में वह कहता है और उसके अन्तर् में स्त्रीत्व का गुणधर्मं प्रकट होना प्रारम्भ हो जाता है । कल्पना की प्रबलता हो तो संभव है। उसी जन्म में वह स्त्री बन जाए। यदि कल्पना अपेक्षित प्रबल न हो तो वह अगले जन्म में, दूसरे-तीसरे या चौथे जन्म में निश्चित ही स्त्री बन जाएगा । उसका भावात्मक धर्म ( पुरुष गुण - धर्म) प्रबल था, वह अभावात्मक धर्म ( स्त्री गुण-धर्म ) के द्वारा प्रभावित होते-होते अपनी सत्ता को बदल देता है या उसकी सत्ता बदल जाती है । स्त्री धर्म की अभावात्मक सत्ता उसमें प्रकट होने लग जाती है और एक बिन्दु ऐसा आता है कि वह अभावात्मक सत्ता भावात्मक बन जाती है तथा भावात्मक सत्ता अभावात्मक सत्ता के रूप में बदल जाती है । यह मानवीय कल्पना और उसकी परिणति का चमत्कार है । हम भावात्मक गुण-धर्म को छोड़कर अभावात्मक गुण-धर्मों की ओर ध्यान देते हैं। तब वे हमें प्रभावित करने लग जाते हैं । आदमी समझता नहीं है वह बिना सोम कुछ बुरी बातें कह देता है और वे बुरी बातें उसके जीवन में घटित होने लग जाती हैं । कोई आदमी बच्चों को डराने के लिए कह देता है - ' ऐसा मत करो, मैं तुम्हें मार डालूंगा ।' यह बहुत भयंकर बात है । सामान्य सी बात लगती है किन्तु वही बात दो चार दस बार उसके मुंह से निकलती है और गहरी जड़ जमा लेती है । फिर यह छूटती नहीं । कोई क्षण वैसा आता है कि सचमुच वह उस बच्चे को मार ही डालता है । हमारी चेतना की परिणतियां बहुत विचित्र हैं । इतनी विचित्र हैं कि यदि हम उनके प्रति पूर्ण जागरूक नहीं रहते हैं तो हम स्वयं अपने ही लिए खतरा पैदा कर
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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