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________________ महावीर की साधना का रहस्य जब हम मनन करना चाहते हैं तब मानसिक ऊर्मियों का प्रवाह चालू हो जाता है । जितने समय तक हमारा मनन चलता है, उतने समय तक वह प्रवाह भी चालू रहता है । हम स्मृति और मनन के आधार पर कल्पना करते हैं, उस समय भी मन की ऊर्मियां प्रवाहित हो जाती हैं । -१५६ स्मृति को रोककर मानसिक ऊर्मियों को किसी एक विषय में प्रवाहित कर देना मानसिक ध्यान है । इस ध्यान में मानसिक प्रकम्पन समाप्त नहीं होते । किन्तु उनकी गति एक दिशा में हो जाती है और जब तक वह गति एक दिशा में रहती है तब तक मानसिक ध्यान बना रहता है । जैसे ही मानसिक ऊर्मियों का प्रवाह अनेक दिशाओं में गतिशील होता है, ध्यान भंग हो जाता है । क्या प्रकम्पनों को रोका जा सकता है ? कोई भी शरीरधारी प्राणी प्रकम्पनों को सर्वथा नहीं रोक सकता । हमारी शारीरिक चेष्टाओं का कारण पेशी - मंडल है । दो प्रकार की पेशियां होती हैं - ऐच्छिक और अनैच्छिक । ऐच्छिक पेशियों को हम अपनी इच्छा के अनुसार गति दे सकते हैं । अनैच्छिक पेशियों पर हमारी इच्छा का अधिकार नहीं होता । वे अपनी चेष्टा करने में स्वायत्त होती हैं । हम जब शरीर को स्थिर करने का प्रयत्न करते हैं, शरीर के प्रकम्पनों को रोकने का प्रयत्न करते हैं तब हमारा प्रयत्न ऐच्छिक पेशियों की चेष्टाओं को रोकने का ही होता है । हाथ, पैर आदि को गति देना हमारी इच्छा के अधीन है और इनकी गति को रोकना भी हमारी इच्छा के अधीन है इसलिए जब हम ध्यान करना चाहते हैं तब सबसे पहले हाथ, पैर आदि को किसी विशेष मुद्रा में स्थापित कर उनकी गति को स्थगित कर देते हैं । यह कायिक ध्यान मानसिक ध्यान की मुद्रा हो जाता है । हृदय, फुफ्फुस, आमाशय, यकृत और आंत - इन अवयवों की चेष्टा हमारी इच्छा के अधीन नहीं है । इसलिए हम ध्यान की स्थिर मुद्रा में बैठे होते हैं तब भी इनका प्रकम्पन चालू रहता है । मस्तिष्क और स्वसंचालित स्नायु-मंडल की क्रिया भी चालू रहती है । इसलिए शरीर को स्थिर और मन को एक ध्येय पर प्रवाहित करने पर भी इन्द्रियों के अनुभव, सुखदुःख, सर्दी गर्मी आदि की संवेदना होती रहती है । यह ध्यान की पहली भूमिका है । शरीर की स्थिरता, श्वास की मंदता और मन की एकाग्रता के असंख्य स्तर हैं । उन सब स्तरों का प्रतिपादन करने के लिए हमारे पास कोई भाषा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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