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________________ ध्यान हम दो सत्ताओं के बीच में अपना जीवन चला रहे हैं-एक प्रत्यक्ष सत्ता है और दूसरी परोक्ष सत्ता। परोक्ष सत्ता आत्मा की है और प्रत्यक्ष सत्ता मन की है । परोक्ष सत्ता तक पहुंचने में हमें बड़ी कठिनाई है, अनेक बाधाएं हैं और वे बाधाएं सत्ता के द्वारा उपस्थित की जा रही हैं। मन का जगत् ऐसा है कि जब हम उसमें उलझ जाते हैं तो परोक्ष सत्ता तक पहुंचने का मार्ग बन्द हो जाता है । किन्तु परोक्ष सत्ता बहुत शक्तिशाली है। वह अपने पहुंच के मार्ग को सदा के लिए बन्द नहीं होने देती। हम आत्मा को नहीं देखते । हमारी इन्द्रियां उस अमूर्त सत्ता को नहीं देख पातीं। वह स्वयं बाह्य जगत् में अपने को प्रकट करती है। उसके प्रकट होने के चार माध्यम हैं—शरीर, वाणी, श्वास और मन । आत्मा की अनुपस्थिति में शरीर स्पंदित नहीं होता और मन गतिशील नहीं बनता । ये चारों आत्मा से प्राण पाकर ही अपना काम करते हैं । ये द्वार बनते हैं, खिड़कियां बनते हैं और इनमें से जो झांकता है वह आत्मा है । जैसे शरीर एक यंत्र है, वैसे ही मन भी एक यंत्र है। जैसे शरीर अचेतन है, वैसे ही मन भी अचेतन है । शरीर, वाणी, श्वास और मन-ये सब अचेतन हैं । आत्मा में से एक चैतन्य की धारा निकलती है, वह परमाणुओं के साथ मिलकर प्राण की धारा हो जाती है । वह धारा जिसके साथ जुड़ती है, वही सचेतन हो जाता है, सक्रिय हो जाता है । जैन दर्शन का सिद्धांत है कि एक क्षण में एक ही क्रिया होती है। मन की क्रिया होती है तब वचन की नहीं होती और जब वचन की होती है तब शरीर की नहीं होती। इन तीनों की क्रिया एक साथ नहीं होती । हम चिन्तन करते हैं तब भी शरीर होता है । चिन्तन नहीं करते हैं तब भी शरीर होता है। शरीर का होना और उसका सचेतन या सक्रिय होना—ये दो बातें हैं। जब चैतन्य या प्राण की धारा शरीर से जुड़ती है तब शरीर सक्रिय हो जाता है । वह चैतन्य की धारा जब वाणी के यंत्र से जुड़ती है तब वाक् स्फूर्त हो जाता है और वह चैतन्य की धारा जब मन के यन्त्र के साथ जुड़ती है तब मन गतिशील हो जाता है। तीनों
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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