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महावीर की साधना का रहस्य बैठा था। भक्तों ने जब बार-बार यह कहा तब सुकरात बोला-'क्यों घबराते हो ? तुम्हें कष्ट क्यों हो रहा है ? तुम जानते हो कि इस दुनिया में कुछ लोग नास्तिक हैं और कुछ लोग आस्तिक । जो नास्तिक हैं, वे कहते हैं कि आत्मा नहीं है । जब आत्मा नहीं है, तो कौन मरेगा ? आस्तिक कहते हैं कि आत्मा है पर आत्मा अमर है । आत्मा अमर है तो फिर वह मरता नहीं है। फिर चिन्ता क्या ? नास्तिकों की बात मैं मानूं, तो फिर मुझे कोई चिन्ता नहीं है। क्योंकि आत्मा है ही नहीं तो फिर मरेगा कौन ? आस्तिकों की बात मानूं तो आत्मा अमर है, फिर मुझे चिन्ता क्या ?'
अब आप सुकरात से इस आचरण का विश्लेषण करें। उसका चरित्र कितना उदात्त बना कि सामने मृत्यु के झोंके आ रहे हैं और वह बिलकुल अभय होकर बैठा है। मौत के नगाड़े बज रहे हैं और सुकरात शांत होकर बैठा है, वह जहर नहीं पी रहा है, अमृत की प्याली पी रहा है। यह इतना उदात्त चरित्र किस आधार पर बना ? विवेक के आधार पर बना। यदि मनुष्य में विवेक का जागरण न हो तो मौत आना तो दूर की बात है, कोई यह कह दे कि तुम छह महीने के बाद मर जाओगे तो छह महीने किसको आएंगे, वह पहले दिन ही आठ आना मर जाएगा।
ये तीन कक्षायें आपके सामने प्रस्तुत हैं जो हमारे चरित्र को प्रभावित करती हैं और जिनके आधार पर हमारे चरित्र का निर्माण होता है। आप भगवान् महावीर के चरित्र को लें, उनके शिष्यों के चरित्र को लें। उनका इतना विशाल उदात्त चरित्र किस आधार पर बना ? भारतवर्ष के दूसरे धर्मों के सन्तों के चरित्र को आप लें, उनका चरित्र इतना उदात्त किस आधार पर बना ? यह बना है धर्म-चेतना और विवेक-चेतना के जागरण के आधार पर । मैं समझता हूं कि धर्म की चेतना ही परमार्थ की चेतना है। धर्म-शून्य
चेतना परमार्थ-चेतना नहीं हो सकती। उसके आधार पर उदात्त चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता।
कोई आदमी गाली देता है और जिसे गाली दी जाती है वह आशीर्वाद देता है । मनुष्य का सामान्य स्वभाव है गाली के प्रति गाली। किन्तु गाली के प्रति शुद्ध हृदय होना और गाली देने वाले के प्रति भलाई की कामना करना, ऐसा चरित्र विवेक-चेतना या धर्म चेतना के आधार पर ही बन सकता है ; अन्यथा ऐसा नहीं हो सकता ।
चरित्र-निर्माण में वंशानुक्रम का भी बहुत बड़ा योग रहता है। लोग विवाह