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________________ मनोविज्ञान और चरित्र-विकास १२६ करूंगा । उस काम से बचना चाहूंगा जिस काम को करने पर निन्दा होती है, दूसरे लोग बुरा मानते हैं, अपयश करते हैं। आज अगर किसी को पूंजीवादी कहा जाए तो वह कतराता है। क्योंकि आज पूंजीवाद के प्रति घृणा का भाव या निन्दा का भाव अजित हो गया है। दूसरी ओर आप देखिए कि जो बिलकुल डिक्टेटर हैं, पद्धति में डिक्टेटरशिप मान्य है, किन्तु वे भी अपने को लोकतन्त्री कहलाना पसंद करते हैं । वे नहीं चाहते कि अधिनायकवादी के रूप में दुनियां के सामने उनका चेहरा प्रस्तुत हो । क्योंकि अधिनायकवाद आज एक प्रकार से धूमिल हो गया है । उसका मूल्य घट गया है, अवमूल्यन हो गया है। कोई उसे पसन्द नहीं करता। इस स्थिति का निर्माण समाज की निन्दा और प्रशंसा के आधार पर हुआ है । मनुष्य के चरित्र-निर्माण में निन्दा और प्रशंसा का भी बहुत बड़ा योग रहता है। सुख और दुःख-ये भी चरित्र-निर्माण में बहुत सहायक बनते हैं। बच्चे की आदतें इसी आधार पर अर्जित होती हैं । बच्चे ने आग की ओर हाथ बढ़ाया, ताप लगा, अच्छा नहीं लगा । वह हाथ को अपनी ओर खींच लेता है । पानी पीया, अच्छा लगा, पानी पीने लग जाता है । कोई बात अपने मांबाप से कही, मां-बाप ने उसे थपथपाया । वड़ा आराम मिला, सुख मिला और वह काम करने लग जाता है । कोई भी आचरण किया और मन को प्रसन्नता मिली, वह काम करना सीख जाता है । आंख पर पट्टी बांधकर चला, लड़खड़ा गया, खम्भे से चोट खा ली, वैसा काम आगे नहीं करेगा। मुझे याद है जब मैं बच्चा था-छोटा बच्चा था—एक दिन न जाने मन में क्यों ऐसा आया कि आंख पर पट्टी बांध ली और पट्टी बांधकर चलने लगा। चलते-चलते घर का दरवाजा आया। वहां भीत थी । सीधा नहीं जाकर दरवाजे से टकरा गया। चोट लग गई, जिसका निशान अभी तक बना हुआ है । फिर कभी पट्टी नहीं बांधी। जिस काम में हमें दुःख का अनुभव होता है, फिर वह काम हम छोड़ देते है । एक श्रेणी के तीन युगल मैंने आपके सामने प्रस्तुत किए, जो हमारे चरित्र को प्रभावित करते हैं। भय और प्रलोभन, प्रशंसा और निन्दा, सुख और दुःख-ये तीन युगल हैं, एक ही श्रेणी के, एक ही कक्षा के, जो मनुष्य के चरित्र को प्रभावित करते हैं और बहुत सारे लोगों का चरित्र इन बातों से प्रभावित होता है। सामान्य लोगों का तो अकसर होता ही है। इन्हीं बातों के आधार पर कुछ
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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