SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन का विलय १२३ वेदना का हेतु है । वहुत सारे लोग सोचते हैं कि मैं अकेला रहकर क्या करूंगा ? जो काम सब लोग कर रहे हैं, उसमें फिर मुझे क्या कठिनाई है । काम करने की कोई जरूरत नहीं है, पर सोचता है कि जब सब ही कर रहें हैं, तब फिर मैं अकेला बचकर क्या करूंगा ? बहुत सारे लोग होते हैं जो इसी भाषा में सोचते हैं कि जिसे सब करें वह काम हमें कर लेना चाहिए । कोई जरूरत नहीं सोचने और विचारने की । यह होती है प्रवाहपाती चेतना । एक होती है लोकसंज्ञा - लोकानुकरण, जो अनुकरण के आधार पर किया जाता है, लौकिक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है। बहुत सारी ऐसी लौकिक मान्यताएं होती हैं, उनके आधार पर हमारी चेतना का निर्माण होता है और हम काम करते चले जाते हैं । एक व्यक्ति ने एक दिन पूछा था कि जैसे मनोविज्ञान में मौलिक मनोवृत्तियों का निर्धारण है, वैसे ही योग में वृत्तियों का निर्धारण है या नहीं ? उस दिन संक्षेप में मैंने इसका उत्तर दिया था, किन्तु आज विस्तार में इस पर चर्चा कर रहा हूं । क्रोध आदि मौलिक मनोवृत्तियां हैं। जैन परिभाषा में इन्हें संज्ञा कहा जाता । वे दस हैं - क्रोध-संज्ञा, मान- संज्ञा, लोभ-संज्ञा, आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा, परिग्रह - संज्ञा, ओघ संज्ञा और लोकसंज्ञा । ये दस मौलिक मनोवृत्तिया हैं और ये प्राणिमात्र में मिलती हैं । जो चेतना के स्तर पर पहुंच गए, जो ज्ञानी हो गए, उनकी बात आप छोड़ दीजिए । जो ज्ञानी नहीं हुए हैं, वेदना के स्तर पर जी रहे हैं, उनमें ये दसों वृत्तियां मिलती हैं । हम बहुत प्रभावित हो जाते हैं । बाहर कोई घटना घटित होती है, किसी के यहां दुःख हुआ, कोई रोता है तो सुनने वाला भी रुआंसा हो जाता है । 'थावच्चापुत्र' के पड़ोस में बच्चे का जन्म हुआ, गीत गाये जाने लगे और एक सुनहला अवसर आया । 'थावच्चापुत्र' प्रफुल्ल हो गया और खिल उठा । कुछ दिन बाद 'थावच्चापुत्र' के पड़ोस में मृत्यु हो गई, करुणा क्रन्दन और चीत्कार होने लगा । 'थावच्चापुत्र' का मन रुआंसा हो गया । हम अनुभव करते हैं कि बहुत सारे प्रभावों को लोग ग्रहण करते हैं, और तभी ग्रहण करते हैं जब हम वृत्ति के स्तर पर, वेदना की चेतना के स्तर पर जीते हैं । अज्ञानी आदमी वेदना के स्तर पर जीता है, इसका मतलब यह हुआ कि आप एक कसौटी अपने हाथ में रखें, या हर कोई व्यक्ति अपने पास रखे कि मेरे मन पर अगर दूसरी स्थितियों का प्रभाव होता है, सामने जैसा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy