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________________ ११८ महावीर की साधना का रहस्य चालू रहती है । श्वास जब नहीं रहता तब शरीर की क्रिया ठप्प हो जाती है । श्वास की उत्तेजना मिलती है तब मस्तिष्क काम करता है । मन की क्रिया होती है तब मस्तिष्क काम करता है । जैसे ही हमने श्वास को बन्द किया श्वास की उत्तेजना समाप्त हो गई। उसके समाप्त होते ही मस्तिष्क की क्रिया भी शान्त हो गयी। मन को हम उत्पन्न करते हैं तब वह उत्पन्न होता है। उसके प्रवाह को रोक देते हैं तब वह अनुत्पन्न हो जाता है। • मन की शांति के लिए हमें क्या करना है ? मन की शान्ति के लिए कुछ भी नहीं करना है । नहीं करना ही मन को खाली रखना है और मन को खाली रखना ही मन की शान्ति है। मन को जितना भरेंगे उतनी ही अशान्ति होगी। भरे हुए बर्तन में कोई वस्तु नहीं समा सकती । भरे हुए घर में कोई आदमी नहीं रह सकता। खाली बर्तन में कोई चीज समा सकती है । खाली घर में आदमी रह सकता है। खाली मन में चेतना का अवतरण हो सकता है । यह चेतना का अवतरण ही मन की शान्ति है । अन्तरंग की सक्रियता बढ़ेगी, मन निष्क्रिय हो जाएगा। अन्तरंग की सक्रियता ही मन की निष्क्रियता है। भीतरी जागरूकता ही बाहरी सुषुप्ति है। शान्ति कोई मूर्छा नहीं है । वह भीतरी आग का प्रज्वलन है। • हम मन से परिचित कैसे हो सकते हैं ? हम मन से परिचित हैं । उससे अपरिचित होना है। परिचय का दूसरा पहलू अपरिचय है। अपरिचित हुए बिना हम किसी से परिचित नहीं हो सकते । हम ध्यान करें, मन से अपरिचित होने का अभ्यास करें, उसका परिचय हमें अपने आप हो जाएगा।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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